तुलसीदासजी द्वारा रचित श्री जानकी स्तुति
यदि आप अपने जीवन में अपार सफलता और धन ऐश्वर्य चाहते है तो तुलसीदासजी द्वारा रचित श्री जानकी स्तुति का नित्य पाठ करे। जो भक्त मन से श्री जानकी स्तुति का नित्य पाठ करता है ऐसे भक्तों पर माँ सीता सदा प्रसन्न रहती है।
माँ जानकी की भक्ति से मनुष्य के सभी प्रकार के दुखों का नाश हो जाता है। उसके सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे धन ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। उसकी दरिद्रता का सदा सदा के लिए नाश हो जाता है और उसकी धन-समृद्धि में निरंतर वृद्धि होती रहती है। माँ जानकी स्तुति करने से शत्रु पर विजय प्राप्त होती है। माँ जानकी साक्षात महालक्ष्मी ही है, इसलिए जो मनुष्य प्रतिदिन सच्चे मन से जानकी स्तुति का पाठ करता है, ऐसे मनुष्य को माँ सीता की असीम कृपा प्राप्त होती है।
-----श्री जानकी स्तुति-----
भई प्रगट कुमारी भूमि-विदारी जनहितकारी भयहारी।
अतुलित छबि भारी मुनि-मनहारी जनकदुलारी सुकुमारी।।
सुन्दर सिंहासन तेहिं पर आसन कोटि हुताशन द्युतिकारी।
सिर छत्र बिराजै सखि संग भ्राजै निज-निज कारज करधारी।।
सुर सिद्ध सुजाना हनै निशाना चढ़े बिमाना समुदाई।
बरषहिं बहुफूला मंगल मूला अनुकूला सिय गुन गाई।।
देखहिं सब ठाढ़े लोचन गाढ़ें सुख बाढ़े उर अधिकाई।
अस्तुति मुनि करहीं आनन्द भरहीं पायन्ह परहीं हरषाई।।
ऋषि नारद आये नाम सुनाये सुनि सुख पाये नृप ज्ञानी।
सीता अस नामा पूरन कामा सब सुखधामा गुन खानी।।
सिय सन मुनिराई विनय सुनाई सतय सुहाई मृदुबानी।
लालनि तन लीजै चरित सुकीजै यह सुख दीजै नृपरानी।।
सुनि मुनिबर बानी सिय मुसकानी लीला ठानी सुखदाई।
सोवत जनु जागीं रोवन लागीं नृप बड़भागी उर लाई।।
दम्पति अनुरागेउ प्रेम सुपागेउ यह सुख लायउं मनलाई।
अस्तुति सिय केरी प्रेमलतेरी बरनि सुचेरी सिर नाई।।
--दोहा--
निज इच्छा मखभूमि ते प्रगट भईं सिय आय।
चरित किये पावन परम बरधन मोद निकाय।।
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