श्री आदि शंकराचार्य ने माँ जगदम्बा भवानी का ध्यान करके भवानी अष्टकम स्त्रोत्र की रचना की थी। भवानी अष्टकम माँ आदिशक्ति का एक अति प्रभावशाली स्त्रोत्र है। जिसका एक एक शब्द मन और मष्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालता है। माँ आदि शक्ति अपने दयालु स्वभाव के लिए जग प्रसिद्ध है। जो भी वयक्ति जब किसी संकट में फस जाता है और ऐसा प्रतीत हो की सब मार्ग बंद हो गये है तो उस समय माँ आदि शक्ति का ध्यान लगाकर भवानी अष्टकम का पाठ करता है उसे तुरंत ही कष्टों से छुटकारा मिलना शुरू हो जाता है। भवानी अष्टकम का नित्य पाठ सभी सांसारिक सुखो को देने वाला है।

Bhavani Ashtakam in hindi

भवानी अष्टकम स्त्रोत्र हिंदी अर्थ के साथ। Bhavani Ashtakam in hindi


न तातो न माता न बन्धुर्न दाता

न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।

न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव

गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥१॥

हिंदी अर्थ:- हे भवानी! पिता, माता, भाई बहन, दाता, पुत्र, पुत्री, सेवक, स्वामी, पत्नी, विद्या और व्यापार – इनमें से कोई भी मेरा नहीं है, हे भवानी माँ! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, मैं केवल आपकी शरण हूँ।


भवाब्धावपारे महादुःखभीरु

पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः।

कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं

गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥२॥

हिंदी अर्थ:- हे भवानी माँ, मैं जन्म-मरण के इस अपार भवसागर में पड़ा हुआ हूँ, भवसागर के महान् दु:खों से भयभीत हूँ। मैं पाप, लोभ और कामनाओ से भरा हुआ हूँ तथा घृणायोग्य संसारके (कुसंसारके) बन्धनों में बँधा हुआ हूँ। हे भवानी! मैं केवल तुम्हारी शरण हूँ, अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।

 

न जानामि दानं न च ध्यानयोगं

न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्।

न जानामि पूजां न च न्यासयोगं

गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥३॥

हिंदी अर्थ:- हे भवानी! मैं न तो दान देना जानता हूँ और न ध्यानयोग मार्ग का ही मुझे पता है। तंत्र, मंत्र और स्तोत्र का भी मुझे ज्ञान नहीं है। पूजा तथा न्यास योग आदि की क्रियाओं को भी मै नहीं जानता हूँ। हे देवि! हे माँ भवानी! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, मुझे केवल तुम्हारा ही आश्रय है।


न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थ

न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्।

न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मार्त

गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥४॥

हिंदी अर्थ:- हे भवानी माता! मै न पुण्य जानता हूँ, ना ही तीर्थों को, न मुक्ति का पता है न लय का। हे मा भवानी! भक्ति और व्रत भी मुझे ज्ञान नहीं है। हे भवानी! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, अब केवल तुम्हीं मेरा सहारा हो।


कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः

कुलाचारहीनः कदाचारलीनः।

कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं

गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥५॥

हिंदी अर्थ:- मैं कुकर्मी, कुसंगी (बुरी संगति में रहने वाला), कुबुद्धि (दुर्बुद्धि), कुदास(दुष्टदास) और नीच कार्यो में ही प्रवत्त रहता हूँ (सदाचार से हीन कार्य), दुराचारपरायण, कुत्सित दृष्टि (कुदृष्टि) रखने वाला और सदा दुर्वचन बोलने वाला हूँ। हे भवानी! मुझ अधम की एकमात्र तुम्हीं गति हो, मुझे केवल तुम्हारा ही आश्रय है।


प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं

दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्।

न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये

गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥६॥

हिंदी अर्थ:- हे माँ भवानी! मैं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इन्द्र को नहीं जानता हूँ। सूर्य, चन्द्रमा,तथा अन्य किसी भी देवता को भी नहीं जानता हूँ। हे शरण देनेवाली माँ भवानी! तुम्हीं मेरा सहारा हो, मैं केवल तुम्हारी शरण हूँ, एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।


विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे

जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।

अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि

गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥७॥

हिंदी अर्थ:- हे भवानी! तुम विवाद, विषाद में, प्रमाद, प्रवास में, जल, अनल में (अग्नि में), पर्वतो में, शत्रुओ के मध्य में और वन (अरण्य) में सदा ही मेरी रक्षा करो, हे भवानी माँ! मुझे केवल तुम्हारा ही आश्रय है, एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।

 

अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो

महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः।

विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं

गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥८॥

हिंदी अर्थ:- हे माता! मैं सदा से ही अनाथ, दरिद्र, जरा-जीर्ण, रोगी हूँ। मै अत्यन्त दुर्बल, दीन, गूँगा, विपद्ग्रस्त (विपत्तिओं से घिरा रहने वाला) और नष्ट हूँ। अत: हे भवानी माँ! अब तुम्हीं एकमात्र मेरी गति हो, मैं केवल आपकी ही शरण हूँ, तूम्हीं मेरा सहारा हो।


॥इति श्रीमच्छड़्कराचार्यकृतं भवान्यष्टकं सम्पूर्णम्॥


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