शिव पुराण के अनुसार भैरव भी भगवान शंकर के ही अवतार माने जाते हैं। भैरव के बारे में यह प्रचलित है कि वह अत्यधिक क्रोधी स्वभाव वाले, तामसिक गुण रखने वाला और अघोरी व्रत का पालन करने वाला है।
शिव के भैरव अवतार का मूल उद्देश्य यह है कि मनुष्य अपने सभी अवगुण जैसे शराब पीना, तामसिक भोजन, क्रोधी स्वभाव आदि भैरव को समर्पित कर देना चाहिए और पूरी तरह से धर्मी आचरण करना चाहिए।
भगवान शिव ने काटा था ब्रह्मा जी का पाँचवा सिर।
भैरव को काशी का पहरेदार और शासक कहाँ जाता हैं, शिव पुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। इनके अवतार लेने की कथा इस प्रकार है-
एक बार भगवान शंकर की माया के भ्रम से प्रभावित होकर ब्रह्मा और विष्णु अपने आप को श्रेष्ठ मानने लगे। इस विषय में जब दोनों यह प्रश्न वेदों से पूछा गया तो उन्होंने शिव को ही सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च बताया। लेकिन ब्रह्मा और विष्णु ने उनकी इस बात को नकार दिया। तभी एक विशाल तेजपुंज के बीच में एक दिव्य पुरुष की आकृति दिखाई दी। उसे देखकर ब्रह्मा ने कहा- हे चंद्रशेखर तुम तो मेरे ही पुत्र हो। इसलिए मेरी शरण में जाओ। ब्रह्मा की ऐसी अहंकार पूर्ण बात को सुनकर भगवान शंकर क्रोधित हो गए।
उसी समय उनकी भृगुटि से काल भैरव प्रगट हुए, तब शिव ने उस पुरुष (काल भैरव) से कहा- काल के समान सुशोभित होने के कारण, तुम ही वास्तविक कालराज हैं। उग्र होना भैरव का स्वभाव है। काल भी तुमसे डरेगा, तो इसलिए तुम काल भैरव हो। आज से मुक्तिपुरी काशी का आधिपत्य सदैव के लिए तुम पर ही रहेगा। तुम ही उक्त नगर के वासियो के शासक और मुक्तिदाता भी होंगे। भगवान शंकर से इन वरदानों को प्राप्त करने के बाद, कालभैरव ने ब्रह्मा के पाँचवाँ सिर को जो अंहकार से पूर्ण था उसे अपनी उंगली के नाखून से काट दिया। ब्रह्मा का पाँचवाँ सिर काटने से भैरव को ब्रह्म हत्या का दोष लग गया।
ब्रह्म हत्या के दोष से काल भैरव की मुक्ति।
ब्रह्मा का पाँचवाँ सिर काटकर भैरव ब्रह्म हत्या के दोषी हो गए। तब ब्रह्महत्या के कारण भैरव रहने लगे। तब भगवान शिव ने भैरव को ब्रह्महत्या से छुटकारा पाने के लिए व्रत रखने का आदेश दिया और कहा- जब तक यह कन्या (ब्रह्महत्या) वाराणसी पहुंचेगी, तब तुम भयानक रूप धारण करके उससे आगे निकल जाना, और उससे पहले काशी पहुंच जाना।
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काशी में ही आपको ब्रह्मा की हत्या के पाप से मुक्ति मिलेगी। तब चारों ओर घूमते हुए भगवान भैरव ने जब मुक्त नगर पुरी काशी में प्रवेश किया, उसी समय ब्रह्महत्या पाताल लोक में चली गई और काल भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिल गई। तभी से काल भैरव का वास काशी में हो गया।
शिव के साथ भैरव की पूजा का महत्व।
ऐसी मान्यता है, जो व्यक्ति काशी स्थित कपाल मोचन तीर्थ का स्मरण करता है, उसके इस जन्म और अन्य सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। यहां आकर स्नान करने और पितरों और देवताओं को प्रणाम करने के बाद व्यक्ति ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाता है। कपाल मोचन तीर्थ के पास भक्तों के सुखदायक भगवान भैरव स्थित हैं। सभी के प्रिय और कल्याणकारी, भगवान काल भैरव मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष के आठवें दिन प्रकट हुए थे। जो व्यक्ति काल भैरव के पास व्रत रखकर उनका जागरण करता है, उसे सभी बड़े पापों से मुक्ति मिल जाती है।
यदि कोई व्यक्ति भगवान विश्वेश्वर का भक्त होने के कारण काल भैरव का भक्त नहीं है, तो उसे बहुत दुख भोगना पड़ता है। यह काशी में विशेष रूप से सच है। काशीवासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवार्य बताई गई है। भगवान शंकर के विभिन्न अवतारों में भैरव अवतार को पाँचवाँ अवतार बताया गया है। उनकी शक्ति का नाम भैरवी है। भैरवी को गिरिजा का अवतार भी माना जाता है।
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