आपसी सामंजस्य और सहयोग या अपेक्षाएं का जीवन मे आधार
हम सभी अपने जीवन मे कुछ जटिलताओं को अवश्य ही झेलते होंगे पर क्या कभी हमने इसके मूल कारण को जानने का प्रयास किया है। वास्तव मे इन समस्याओ की वज़ह क्या है ? इन सबका एक कारण जो मै अब तक के अनुभव के आधार पर समझ पाया हूँ, वह है एक दूसरे से हमारी अपेक्षायै जो शायद कोई भी किसी की पूरी नही कर सकता है।
हम इसे एक परिवार के उदहारण के तौर पर समझने का प्रयत्न करते है। हमारे परिवार के सभी सदस्य माता-पिता, भाई-बहन,पति-पत्नी, पुत्र और और पुत्री, सामान्यत इतने ही सदस्य होते है, सबका अपना-अपना स्वभाव होता है जो एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न होता है, यही इस प्रकृति का नियम भी है। फिर भी हम एक दूसरे का साथ चाहते है और एक दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़े रहना चाहते है। यही जुड़ाव तो एक परिवार की ताकत होती है और यही हमारे समाज की और देश की भी ताकत है।
परन्तु सामान्यतः ऐसा क्या होने लगता है की हम सब धीरे-धीरे एक दूसरे से दूर होने लगते है। क्या कभी हम इस पर विचार करते है की ऐसा क्यों होता है, और हमे लगता है की हमने तो कोई गलती भी नहीं की है और हमेशा हम स्वयं को ही सही ठहराते है कभी भी विचार नहीं करते की शायद हमसे ही कुछ गलत हुआ हो।
जब हम किसी से कोई नया रिश्ता बनाते है या हमारे जीवन मे कोई नया सदस्य आता है तो उसके प्रति हमारा आकर्षण अधिक होता है और वो एहसास भी बहुत प्यारा लगता है क्योकि हम उस समय उससे कोई अपेक्षा नहीं रखते सिर्फ उसका ध्यान रखते है लेकिन फिर धीरे-धीरे हम उससे अपेक्षाऐ करना शुरु कर देते है उसे अपनी तरह ढालने का प्रयास करने लगते है यही से समस्याए प्रारभ हो जाती है।
क्योकि एक पिता अपने पुत्र के लिए अपनी क्षमताओं से अधिक कार्य करने का प्रयास करता है और वही एक पुत्र भी अपनी क्षमताओं से अधिक पिता के लिए करने का प्रयास करता है, और ऐसा ही पति अपनी पत्नी के लिये तथा पत्नी अपने पति के लिये और भाई अपने भाई के लिये करता है पर कही ना कही यही सत्य है परंतु हम उन सब के प्रयासों को अपनी अपेक्षाओं की तराजू मे तोलने का प्रयास करते है जिससे उनका आपके प्रति समर्पण गौण हो जाता है।
निष्कर्ष
इसलिए हमे अपनी इन अपेक्षाओं को सीमित करने का प्रयास करना चाहिये तभी हम अपने परिवार, समाज और देश मे सहयोग तथा विचारो मे सामंजस्य को स्थापित कर पायगे।
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