वैदिक ज्योतिष एक गणितीय गणना 

ज्योतिष विज्ञानं (Astro Science) भारतीय सनातन साहित्य का एक अति प्राचीन अंग है, जो आज भी भारतीय दर्शन मे अपना स्थान बनाये हुऐ है, जिसकी गणनाये (Calculations) आज भी लोगो को प्रभावित करती है। ज्योतिष शास्त्र (Astro-Text) या ज्योतिष विज्ञानं (Astro-Science) ये दोनों एक दूसरे के पूरक है। 

ज्योतिष शास्त्र वो ग्रन्थ है जो उसमे सम्मलित तथ्यों की प्रमाणिकता के आधार पर लिखा गया है और ज्योतिष विज्ञानं उन तथ्यों (Facts) को तर्कों व गणितय गणनाओं के आधार पर सिद्ध करने का तरीका है। ज्योतिष को मानना या ना मानना ये हर व्यक्ति के अलग-अलग विचारो पर निर्भर करता है परन्तु एक बात तो निश्चित है की अधिकांश (Mostly) वयक्ति अपने भविष्य को जानने के लिये उत्सुक अवश्य रहते है। यही उत्सुकता ज्योतिष को आज भी जीवंत किये हुऐ है। 

ज्योतिष उन खगोलियो पिंडो (Cosmic Planets) अथवा ग्रहो के हमारे जीवन अथवा व्यवस्तओं पर पड़ने वाले अनुकूल या प्रतिकूल प्रभावों की गणितीय गणना (Mathematical Calculations) होती है। आकाश मे गतिमान सभी ग्रह मनुष्य जीवन, उसकी शारीरिक संरचना (Material Body) और उसके आपसी व सामाजिक सम्बन्धो को प्रभावित करते है। ज्योतिष मे मूलतः नव ग्रहो की ही मान्यता है जिसमे सात ग्रहो का पिण्डीय स्वरूप (Body Form) है और दो ग्रह छाया स्वरूप (Non Body Form) है। 

पिण्डीय ग्रह:- सूर्य (Sun), चन्द्रमा (Moon), बृहस्पति (Jupiter), मंगल (Mars), शुक्र (Venus), बुध (Mercury), शनि (Saturn) 
छाया ग्रह:- राहु (Rahu), केतु (Ketu) 

ग्रहों का ज्योतिषिय प्रभाव 

इन ग्रहो का शारारिक (Bodily), मानवीय (Human), सामाजिक (Social) और आध्यात्मिक (Spiritual) प्रभाव 

Astrology is based on Science

सूर्य:- सूर्य सभी ग्रहो मे राजा के पद पर प्रतिष्ठित (Positioned) होता है। यह एक पुरुष प्रधान ग्रह होता है जो आत्मा, ह्र्दय, हड्डियां, पिता, प्रतिष्ठा, आत्मसम्मान, प्रशासन और आज्ञा चक्र का प्रतिनिधत्व (Representation) करता है। सूर्य का किसी भी कुंडली मे प्रभावी होना इन सभी वस्तुओं की प्राप्ति करता है। बलहीन (Weak) या अशुभ सूर्य मनुष्य के आत्मविश्वास को प्रभावित करता है। 

सूर्य सिंह राशि व कृतिका, उतरा फाल्गुनी और उतराषाढ़ा नक्षत्रों का स्वामी होता है जो मेष राशि (Aries Sign) मे अपनी उच्च अवस्था (High State) और तुला राशि मे अपनी नीच अवस्था (Low State) मे होता है। सूर्य मंगल, चंद्र, बुध और बृहस्पति से मित्रता शनि और शुक्र से सम भाव (Equal State) और राहु व केतु से शत्रुता का भाव रखता है। सूर्य की मात्र एक ही दृष्टि (Sight) होती है इसलिए यह अपने से सिर्फ सातवे घर को ही देखता है। 

सूर्य कभी वक्र गति (Anti-Clock Wise) से नहीं चलता। सूर्य का मुख्य रतन माणिक्य (Ruby) होता है। सूर्य कुंडली मे कभी अस्त नहीं होता परन्तु ये दूसरे सभी ग्रहो को अस्त करने की क्षमता रखता है, जो भी ग्रह सूर्य के निकट 10° के दायरे मे आ जाता है वो ग्रह अस्त (Debilitate) हो जाता है। सूर्य एक राशि मे एक माह तक रहता है इसकी महादशा 6 वर्ष की होती है।    
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चन्द्रमा:-
चन्द्रमा एक शीतल ग्रह (Calm Planet) है जो रानी का प्रतिनिधित्व करता है इसलिए इसे स्त्री प्रधान ग्रह कहा जाता है। सूर्य के बाद इसी ग्रह का सबसे अधिक Importance होता है। कुंडली मे राशि और नक्षत्र का निर्धारण चन्द्रमा की Position से ही होता है। जन्म के समय जिस राशि (Sign) या नक्षत्र मे चन्द्रमा Positioned होता है उसी से ही जातक की राशि और नक्षत्र का निर्धारण किया जाता है। 


चन्द्रमा हमारे मन, गर्भाशय, शरीर मे रक्त के प्रवाह, माता का कारक और सूर्य की भाती आज्ञा चक्र का कारक होता है। यह कर्क राशि (Cancer Sign) व रोहिणी, हस्त और श्रावण नक्षत्र का स्वामी होता है। यह वृष राशि (Taurus Sign) मे उच्च (High) तथा वृष्चिक राशि (Scorpio Sign) मे अपनी नीच (Low) अवस्था मे होता है। यह सभी ग्रहो से समान भाव (Equal State) रखता है, कुंडली मे बलहीन या अशुभ अवस्था का चन्द्रमा मनुष्य को भावनात्मक पीड़ा देता है। 

सूर्य की तरह चन्द्रंमा की भी एक ही दृष्टि होती है यह भी अपने से सातवे घर को ही देखता है। सूर्य की भाती चन्द्रमा भी कभी वक्र गति (Anti-Clock Wise) से नहीं चलता। चन्द्रमा का मुख्य रतन मोती (Pearl) होता है। चन्द्रमा एक राशि मे 2 ¼ दिन रहता है इसकी महादशा 10 वर्ष की होती है।  

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बृहस्पति:-
बृहस्पति को ज्योतिष मे सर्वाधिक शुभ ग्रह माना जाता है यह सूर्य के बाद सभी ग्रहो मे सबसे बड़ा है, यह एक पुरुष प्रधान ग्रह है। यह गुरु के पद का प्रतिनिधित्व करता है। ज्योतिष मे बृहस्पति को Luck और Prosperity का कारक कहा जाता है। यह शरीर मे चर्बी, लिवर और दूसरे चक्र स्वाधिष्ठान का कारक ग्रह है। 

यह स्त्री की कुंडली मे Husband का कारक ग्रह भी है, यह दो राशियों धनु (Sagittarius), मीन (Pisces) और पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का स्वामी होता है। यह कर्क राशि (Cancer Sign) मे उच्च और मकर राशि (Capricorn Sign) मे नीच होता है। बृहस्पति के मित्र ग्रह सूर्य, मंगल, चन्द्रमा और शत्रु ग्रह शुक्र, बुध और राहु है यह शनि और केतु से समान भाव रखता है। 

कुंडली मे बलहीन या पाप ग्रहो से पीड़ित बृहस्पति जातक के भाग्य को क्षीण कर देता है। यह सीधी (Clock Wise) और वक्र (Anti-Clock Wise) दोनों ही गति से चलता है, इसकी तीन दृष्टियाँ (Three-Sight) होती है यह जहां बैठता है वहां से तीसरे, पांचवे और नोवै भाव को देखता है। बृहस्पति का कारक रत्न पुखराज (Yellow Sapphire) होता है, यह एक राशि मे एक वर्ष तक रहता है इसका महादशा काल 16 वर्ष का होता है।

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शुक्र:- बृहस्पति के समान ही शुक्र भी अति शुभ ग्रहों की श्रेणी मे आता है यह एक स्त्री प्रधान ग्रह है। यह जातक की कुंडली मे सौंदर्य, कला, और भौतिक (Materialistic) सुख सुविधा को दर्शाता है। यह हमारी किडनी, पाचन तंत्र और चौथे चक्र अनाहत का कारक ग्रह है। यह पुरुष की कुंडली मे Wife का कारक ग्रह होता है, यह दो राशियों वृष (Taurus), तुला (Libra) और भारिणी, पुर्वफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्रों का स्वामी होता है। 


यह सीधी (Clock Wise) और वक्र (Anti-Clock Wise) दोनों ही गति से चलता है, यह मीन राशि (Pisces) मे उच्च (High) व कन्या राशि (Virgo Sign) मे नीच (Low) का होता है, यह शनि, बुध, राहु से मित्रता सूर्य, चन्द्रमा, बृहस्पति से शत्रुता और मंगल व केतु से समान भाव रखता है। 

कुंडली मे बलहीन शुक्र जातक को आर्थिक रूप से पीड़ित करता है, इसकी एक ही द्रष्टि होती है यह अपने से सातवे भाव को ही देखता है। शुक्र का कारक रत्न हीरा (Diamond) होता है, यह एक राशि मे एक माह और इसका महादशा काल 20 वर्ष का होता है।

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बुध:-
बुध ग्रह सभी ग्रहों मे सबसे अधिक Young माना जाता है इसीलिए इसे ग्रहो का Prince कहा जाता है। इसे स्त्री या पुरुष प्रधानता नहीं होती इसी कारण यह नपुंसक ग्रह (Impotent Planet) कहा जाता है, यह कुंडली मे सबसे अधिक तेज़ी (Fast Speed) से फल देने वाला ग्रह माना जाता है। यह जातक की कुंडली मे मुख्यत बोल चाल की कला, संचार व्यवस्था, मस्तिष्क, नुयरोलॉजिकल (Neurological) समस्याओं, बुवा, चाचा से सम्बन्धो और पांचवे चक्र विशुद्धि चक्र का कारक ग्रह है।

यह सीधी (Clock Wise) और वक्र (Anti-Clock Wise) दोनों ही गति से चलता है, यह कुंडली मे दो राशियों मिथुन (Gemini Sign), कन्या (Virgo) और आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती नक्षत्र का स्वामी होता है, यह अपनी ही राशि कन्या (Virgo) मे उच्च (High) व मीन राशि (Pisces Sign) मे नीच (Low) का होता है। इसकी भी एक ही द्रष्टि होती है यह अपने से सातवे भाव को ही देखता है। 

यह सूर्य, शुक्र, से मित्रता राहु, मंगल, शनि, बृहस्पति से शत्रुता और चन्द्रमा व केतु से समान भाव रखता है। कुंडली मे बैठा अशुभ या बलहीन बुध वाणी, व्यापर और नुयरोलॉजिकल सम्बंधित समस्या उत्पन्न करता है। इसका कारक रत्न पन्ना (Green Emerald) है, यह एक राशि मे एक माह और इसका महादशा काल 17 वर्ष का होता है।

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मंगल:-
मंगल ग्रह सभी ग्रहों मे सबसे अधिक Energetic  Planet माना जाता है, यह सभी ग्रहों के सेनापति (Military General) के पद पर आसीन है। यह पुरुष प्रधान ग्रह है, यह कुंडली मे ऊर्जा, सामर्थ्य, पराक्रम, धमनियाँ, रक्त, मासपेशिया और तीसरे चक्र मणिपुर चक्र का कारक ग्रह है। यह कुंडली मे छोटे भाइयों की स्थिति को दर्शाता है, यह दो राशियों मेष (Aries), वृष्चिक (Scorpio) और मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा नक्षत्र का स्वामी ग्रह है। 


यह सीधी (Clock Wise) और वक्र (Anti-Clock Wise) दोनों ही गति से चलता है, यह मकर राशि (Capricorn) मे उच्च (High) व कर्क राशि (Cancer Sign) मे नीच (Low) होता है, कुंडली मे बलहीन या अशुभ मंगल जातक को रक्त सम्बन्धी समस्या और उसके पराक्रम को क्षीण कर देता है। इसकी भी तीन दृष्टियाँ (Three-Sight) होती है यह अपने स्थान से चौथे, सातवे और आठवे भाव को देखता है। 

इसका मुख्य रत्न मूंगा (Red Coral) होता है, यह सूर्य, चन्द्रमा, बृहस्पति से मित्रता बुध से शत्रुता और शनि, शुक्र, राहु व केतु से समान भाव रखता है। यह एक राशि मे 49 दिन और इसका महादशा काल 7 वर्ष का होता है।

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शनि:-
शनि ग्रह सभी ग्रहों मे सबसे अधिक Distance पर स्थित है यही वो ग्रह है जो मनुष्य के Heart and Mind मे सबसे अधिक Terror उत्पन करता है, क्योकि यह कर्म का मुख्य कारक ग्रह है। यह सभी ग्रहों के न्यायधीश (Justice) के पद पर आसीन है। 

यह एक स्त्री प्रधान ग्रह है, यह कुंडली मे कर्म फल, धर्म के प्रति आस्था, मनुष्य की न्याय प्रकर्ति, त्वचा से सम्बंधित रोगो, रक्त धमनियाँ, लम्बी बीमारियों, हमारे अधीन होकर काम करने वालो, छोटे कर्मचारियों (Low State Worker) और पहले चक्र मूलाधार चक्र का कारक ग्रह है। यह सीधी (Clock Wise) और वक्र (Anti-Clock Wise) दोनों ही गति से चलता है, यह दो राशियों मकर (Capricorn), कुंभ (Aquarius) और पुष्य, अनुराधा, उतरा भाद्रपद नक्षत्र का स्वामी ग्रह है। 

यह तुला राशि (Libra Sign) मे उच्च (High) व मेष राशि (Aries Sign) मे नीच (Low) होता है, कुंडली मे बलहीन या अशुभ शनि जातक को Monterey Problem और Incurable Disease से ग्रसित कर देता है। महादशा के अतिरिक्त शनि को दो दशाये ढैया (2 ½ Years) और साढ़े साती (7 ½ Years) भी होती है, जब शनि चन्द्रमा से चौथे (Fourth) या आठवे (Eight) भाव (House) मे गोचर करता है उस अवधि को ढैया व जब शनि चंद्र राशि मे गोचर करता है तो उससे एक राशि पहले और एक राशि बाद के समय को साढ़े साती कहते है। 

इसकी भी तीन दृष्टियाँ होती है यह अपने स्थान से तीसरे, सातवे और दसवे भाव को देखता है। इसका मुख्य रत्न नीलम (Blue Sapphire) होता है, यह बुध, शुक्र, राहु से मित्रता सूर्य, चंद्र, मंगल, केतु से शत्रुता और बृहस्पति से समान भाव रखता है। यह एक राशि मे 2 ½ वर्ष और इसका महादशा काल 19 वर्ष का होता है।   

राहु:- राहु सभी ग्रहों मे सबसे अधिक क्रूर ग्रह (Cruel Planet) माना जाता है यह शनि के समान ही फल देता है इसीलिए कहा जाता है 'शनि वत राहु' (Rahu Like Shani)। यह पुरुष प्रधान ग्रह माना जाता है, राहु का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता यह जिस ग्रह के साथ बैठ जाता है उसी के समान व्यवहार करने लगता है। 

राहु सदा वक्र गति (Anti-Clock Wise) से ही चलता है, यह जातक की कुंडली मे मुख्यत राजनीति की कला, मस्तिष्क, बूढ़े व्यक्तियों से सम्बन्धो का कारक ग्रह है। राहु मुख्यता ध्यान केंद्रित का कारक है, जब तक हम किसी पर पूर्ण ध्यान केंद्रित नहीं करते तब तक उसे प्राप्त करना कठिन होता है कुंडली मे राहु की Good Position मस्तिष्क की प्रबलता को दर्शाती है। 


राहु किसी भी राशि का स्वामी नहीं होता परन्तु यह तीन नक्षत्रों आर्द्रा, स्वाति, शतभिषा नक्षत्र का स्वामी होता है, यह मिथुन राशि (Gemini Sign) उच्च (High) व धनु राशि (Sagittarius Sign) मे नीच (Low) के समान फल देता है। इसकी तीन दृष्टियाँ (Three-Sight) होती है यह जहां बैठता है वहां से तीसरे, पांचवे और नोवै भाव को देखता है। 

यह शनि, शुक्र, से मित्रता मंगल, बुध, सूर्य, चंद्र से शत्रुता और बृहस्पति व केतु से समान भाव रखता है। कुंडली मे बैठा अशुभ राहु जातक को सबसे अधिक Mental Problem देता है जीवन मे अचानक कठनाईयाँ और संघर्ष बढ़ जाता है। इसका कारक रत्न गोमेद (Gomed) है, यह एक राशि मे एक 18 माह और इसका महादशा काल 18 वर्ष का होता है।           
 
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केतु:- केतु सभी ग्रहों मे सबसे अधिक धर्म (Religious Deed) का कारक ग्रह माना जाता है यह मंगल की छाया (Shadow) के रूप मे कार्य करता है। राहु की तरह केतु का भी अपना कोई अस्तित्व नहीं होता यह जिस ग्रह के साथ बैठ जाता है उसी के बल और व्यवहार मे वृद्धि करने लगता है। 

यह जातक की कुंडली मे मुख्यत मोक्ष (Free from Wordily Things) का कारक ग्रह है। यह राहु से 180° के अक्षांश पर घूमता है यह राहु के समान सदा वक्र गति (Anti-Clock Wise) से ही चलता है। केतु भी राहु के समान किसी भी राशि का स्वामी नहीं होता परन्तु यह तीन नक्षत्रों अश्वनी, मघा और मूल नक्षत्र का स्वामी होता है, यह धनु राशि (Sagittarius Sign) उच्च (Low) व मिथुन राशि (Gemini Sign) मे नीच (Low) के समान फल देता है। 

इसकी भी तीन दृष्टियाँ (Three-Sight) होती है यह जहां बैठता है वहां से तीसरे, पांचवे और नोवै भाव को देखता है। यह शनि, शुक्र, बुध से मित्रता मंगल, सूर्य, चंद्र से शत्रुता और बृहस्पति व राहु से समान भाव रखता है। कुंडली मे बैठा अशुभ केतु जातक को धर्म के मार्ग से हटा देता है जीवन मे कठनाईयाँ और संघर्ष को बढ़ा देता है। इसका कारक रत्न लहसुनियाँ (Cat's Eye) है, यह एक राशि मे एक 18 माह और इसका महादशा काल 7 वर्ष का होता है। 

अंत मे निष्कर्ष 

वैदिक ज्योतिष पूर्ण रूप से ग्रहों की गणितीय गणना पर आधारित होता है। इसमे 90% Calculation और 10% Astrologer का अपना Experience होता है, जिसके आधार पर Prediction की जाती है। Astrology को समझना काफी ही Difficult होता है, क्योकि यह विषय काफी बड़ा है, जिस पर अभी और अधिक Research की आवश्यकता है              

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