जो विज्ञानं मानव की आयु का बोध करता है और उसकी समय सीमा को बढ़ाने मे सहयोग करता है, वही आयुर्वेद है। आयुर्वेद विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति है और यह भारतीय संस्कृति का एक अटूट अंग है।
आयुर्वेद का मूल सिद्धांत जीवन का निर्माण है यह शरीर को रोग मुक्त करने की क्रिया मात्र नहीं है अपितु यह शारारिक, मानसिक और आध्यात्मिक तत्वों मे परस्पर संतुलन स्थापित करने की प्रक्रिया है। आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर पांच तत्वों (पृथ्वी, अग्नि, वायु, आकाश और जल) का बना होता है, इन्ही तत्वों मे परस्पर असंतुलन ही शरीर मे विकार उत्पन्न करता है।
'आयुर्वेद' चिकित्सा पद्धति क्या है
आयुर्वेद का यह मानना है की रोगी का उपचार उसके शारारिक और मानसिक संतुलन की स्थिति पर निर्भर करता है इसलिए आयुर्वेद औषिधयो के साथ रोगी की जीवन शैली और खान पान पर भी ध्यान केंद्रित करता है।
आयुर्वेदयति बोधयति इति आयुर्वेदः।
आयुर्वेद के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति और संरचना अलग अलग होती है इसलिए उनमे तीन विभन्न दोषो की मात्रा भी भिन्न होती है ये दोष इस प्रकार है -
- 1. वात दोष: इसमे वायु और आकाश तत्व की प्रबलता होती हैं।
- 2. पित्त दोष: इस दोष मे अग्नि तत्व प्रबल होता है।
- 3. कफ दोष: इसमे पृथ्वी और जल तत्व की प्रबलता होती हैं।
आयुर्वेद भी आधुनिक चिकित्सा की तरह दो भागों मे ही विभाजित है कायचिकित्सा (Physician) और शल्यचिकित्सा (Surgeon) प्रमुख है। आयुर्वेद के आदि चिकित्सक धन्वंतरि और अश्वनी कुमारों को माना जाता है यह देवताओं के चिकित्सक थे जिन्हे सभी प्रकार की औषधियों का ज्ञान था।
अश्वनी कुमार ने सर्वप्रथम दक्ष प्रजापति के बकरे का सिर लगाकर शल्य चिकित्सा का उदहारण प्रस्तुत किया था। धन्वंतरि और अश्वनी कुमारों से ही यह विधा मानव कल्याण के लिये प्राचीन ऋषियों तक पहुंची, जिन्होने इसे संगृहीत कर मानव को समर्पित किया। जिसमे चरक संहिता और सुश्रुत संहिता प्रमुख है।
चरक संहिता
चरक संहिता मुख्यत रोगों उनके प्रकार और उनके निदान के लिए आयुर्वेदिक औषधियों की जानकारी पर आधारित है जिसमे च्यवन ऋषि, भारद्वाज, पुनर्वसु, आत्रेय, अग्निवेश, पाराशर आदि का आयुर्वेद उपदेश समाहित है।
सुश्रुत संहिता
सुश्रुत संहिता मुख्यता शल्यचिकित्सा पर आधारित है जिसमे 1220 प्रकार के रोगो और 700 प्रकार की औषधियों का सविस्तार वर्णन है। शल्यशास्त्र को आयुर्वेदाचर्य धन्वन्तरि ही पृथ्वी पर लाने वाले पहले व्यक्ति थे। जिनके ज्ञान को आचार्य सुश्रुत ने लिपिबद्ध किया। ऋषि सुश्रुत त्वचा रोपण तन्त्र (Plastic-Surgery) में भी पूर्ण पारंगत थे। वो आंखों से मोतियाबिन्दु निकालने की सरल कला के भी विशेषज्ञ थे। आज सुश्रुत संहिता को शल्यचिकित्सा का आदि ग्रंथ कहा जाता है।
आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति के प्रकार
इनके अतिरिक्त समय समय पर आयुर्वेदाचार्यो ने ज्ञान और समय की मांग के अनुसार इसे आठ भागो मे विभाजित किया जो इस प्रकार है।
- 1. शल्यतन्त्र (Surgical Techniques)
- 2. शालाक्यतन्त्र (ENT)
- 3. कायचिकित्सा (General Medicine)
- 4. भूतविद्या तन्त्र (Psycho-Therapy)
- 5. कुमारभृत्य (Pediatrics)
- 6. अगदतन्त्र (Toxicology)
- 7. रसायनतन्त्र (Renjunvention and Geriatrics)
- 8. वाजीकरण (Virilification, Science of Aphrodisiac and Sexology)
इन आठ भागो को हम अष्टाङ्ग आयुर्वेद भी कहते है। मुख्यत यही आयुर्वेद की तीन प्रमुख भाग है, कायचिकित्सा (Physician), शल्यचिकित्सा (Surgeon) और अष्टाङ्ग आयुर्वेद। इन्ही के द्वारा आयुर्वेद अपना मुख्य उद्देश्य प्राणी के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा रोगी की रोग को दूर करना के संकल्प को निरंतर पूर्ण कर रहा है -
प्रयोजनं चास्य स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणं आतुरस्यविकारप्रशमनं च ॥
अंत मे निष्कर्ष
आयुर्वेद हमारी अत्यधिक प्राचीन चिकत्सा पद्धति है, जो अब दुबारा काफी प्रचलित हो रही है। आयुर्वेद का एक सबसे बड़ा फायदा यह है की वो Allopathy दवाओं की अपेक्षा शरीर को नुकसान नहीं पहुँचती है, शायद यही कारण है जो अब लोगो का झुकाव Ayurveda की तरफ हो रहा है। सरकार से भी यही अपेक्षा है की वो आयुर्वेद के लिये अधिक से अधिक संस्थान और Research Institute का निर्माण कराये जिससे ये प्राचीन विधा पुनः जीवित हो सके और सभी इस प्राचीन विधा का लाभ लेकर स्वस्थ हो सके।
एक टिप्पणी भेजें
Plz do not enter any spam link in the comment box.