हिन्दू धर्म में 108 अंक पवित्र क्यों माना जाता है।

108 अंक क्यों पवित्र माना जाता है   


आज एक ऐसा विषय जिसके बारे मे हम सभी को पता है, परंतु हमने शायद कभी उस पर ध्यान नहीं दिया होगा। हमारे आस पास जो भी घटित होता है उसका कोई ना कोई कारण अवश्य होता है। फिर चाहे हम उसे आस्था के माध्य्म से स्वीकार करे या फिर तर्क की कसौटी पर उसे परखे, इसलिए यह विषय सबके लिए अलग-अलग है। 

आज एक ऐसा ही विषय है। अक्सर हम देखते है की जो माला हम पूजा पाठ मे या भगवान का स्मरण करने के लिए इस्तेमाल करते है, उसमे 108 ही रुद्र्राक्ष बीज/तुलसी बीज/मोती होते है। ये संख्या मे 108 ही क्यों होती है, क्या कभी हमने इसका कारण जानने का प्रयास किया है, शायद नहीं। 
    

सबसे पहले आस्था के नजरिए से 108 अंक को देखते है

  • भगवान शंकर जब अत्यंत क्रोधित होकर अपना अलौकिक नृत्य 'तांडव' करते है। तब उनके उस नृत्य में कुल 108 मुद्राएं होती हैं। महादेव के पास कुल गणो की संख्या भी 108 ही हैं। 108 को शिव का अंक माना जाता है, क्‍योंकि शिव के मुख्‍य शिवांगों की संख्या भी 108 ही है।  
  • वृंदावन में जब श्री कृष्ण ने रास किया था उस समय गोपियों की संख्या 108 ही थी। श्रीवैष्णव धर्म में विष्णु के 108 दिव्य क्षेत्रों को बताया गया है जिन्हें '108 दिव्यदेशम’ कहा जाता है।
  • गंगा नदी जिसे हिंदू धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है, वह 12 डिग्री के देशांतर और 9 डिग्री के अक्षांश पर फैली हुई है। अगर इन दोनों अंकों को गुना किया जाए तो भी 108 अंक ही मिलता है।
  • मनुष्य में कुल 108 भावनाएं होती हैं, जिसमें से 36 भावनाओं का सम्बन्ध हमारे अतीत से, 36 का सम्बन्ध वर्तमान से और 36 का सम्बन्ध भविष्य से होता है। 
  • समुद्र मंथन को देवताओं और दानवों ने मिलकर पूर्ण किया था ,जिसमे 54 देवता और 54 राक्षस शामिल हुए थे। इनकी संख्या भी कुल मिलाकर 108 ही थी।
  • संस्कृत भाषा में 54 वर्णमाला होती है। इनमें एक स्त्री और दूसरा पुरुष रूप होता है। दोनों रूपों के अक्षरों की संख्या का जोड़ 108 होता है।

अब तर्क के माध्यम से 108 अंक को समझने का प्रयत्न करते है


सनातन धर्म आस्था और वैज्ञानिक तर्क दोनों का संगम है। यहाँ 108 क्यों प्रयोग किया जाता है, उसका एक तार्किक उत्तर भी उसके पास है। हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने विज्ञानं की उसी तार्किकता के आधार पर खगोलीय सरचनाओं का इस प्रकार वर्णन किया है, जो आज भी हमे अचंभित कर देता है।   

सूर्य और चंद्रमा इन दोनों का हमारी खगोलीय और ज्योतिष विधाओं मे बहुत महत्व है। हमारे धर्म ग्रंथो मे सूर्य और चद्रमा की पृथ्वी से दुरी का वर्णन किया गया है। अगर आप सूर्य और चंद्रमा के व्यास को 108 से गुणा करे तो पृथ्वी से सूर्य और चंद्रमा की दूरी का सही अनुमान लगा सकते है।


सूर्य का व्यास - 1.3927 मिलियन कि.मी.
सूर्य और पृथ्वी के बिच की दूरी - 1.3927 x 108 = 150.4116 मिलियन कि.मी. 
चंद्रमा का व्यास - 3474.2 कि.मी. 
चंद्रमा और पृथ्वी के बीच की दूरी - 3474.2 x 108 = 3,75,213.6 कि.मी.

एक सर्किल 360° का होता है। ज्योतिष विज्ञानं के अनुसार बारह राशियां होती है। जो इस प्रकार है।:-
1. मेष, 2. वृषभ, 3. मिथुन, 4. कर्क, 5. सिंह, 6. कन्या, 7. तुला, 8. वृश्चिक, 9. धनु, 10. मकर, 11. कुंभ, 12. मीन   

इसी प्रकार 27 नक्षत्र होते है:-

1.आश्विन, 2.भरणी, 3.कृतिका, 4.रोहिणी, 5.मृगशिरा, 6.आर्द्रा 7.पुनर्वसु, 8.पुष्य, 9.आश्लेषा, 10.मघा, 11.पूर्वा फाल्गुनी, 12.उत्तरा फाल्गुनी, 13.हस्त, 14.चित्रा, 15.स्वाति, 16.विशाखा, 17.अनुराधा, 18.ज्येष्ठा, 19.मूल, 20.पूर्वाषाढ़ा, 21.उत्तराषाढ़ा, 22.श्रवण, 23.धनिष्ठा, 24.शतभिषा, 25.पूर्वा भाद्रपद, 26.उत्तरा भाद्रपद और 27.रेवती।  

                                  
जब इन बारह राशियों से 360° को विभाजित करते है तो 30° प्राप्त होता है। जो की एक राशि का कुल अंश होता है। एक राशि मे चार नक्षत्र होते है। जब एक राशि को चार नक्षत्रो से विभाजित करते है तो 13° 20' प्राप्त होता है। जो एक नक्षत्र का कुल अंश है। 


प्रत्येक नक्षत्र मे चार पादा होते है। जब इन चार पादा से नक्षत्र के अंश को विभाजित करते है तो 3° 20' प्राप्त होता है। जो एक पादा अंश है। इसी प्रकार जब पादा के अंश को राशि के अंश से विभाजित करते है हो एक राशि मे 9 पादा प्राप्त होते है।

अब इस पर गणितय नियम का प्रयोग करते है:-

 12 (राशि) x 9 (पादा) = 108 
 27 (नक्षत्र) x 4 (पादा) = 108 
 12 (राशि) x  9 (ग्रह) = 108 
इससे यह सिद्ध होता है की किसी प्रकार भी गुणा की जाए तब भी कुल गुणाफल 108 ही आयेगा। 
 
अब हम 108 प्राप्त बिन्दुओ या इन 108 पादाओ का ज्यामितीय चित्र बनाते है और उसे आधुनिक विज्ञानं द्वारा मानित गॉड पार्टिकल (ब्रह्मांड की उत्पति का कारक) से मिलान करते है।      
         
हिन्दू धर्म में 108 अंक पवित्र क्यों माना जाता है।

बांया चित्र 108 पादा का ज्यामितीय रूप है, और दांया चित्र गॉड पार्टिकल है। जब इन दोनों चित्रों का मिलान किया जाता है, तो काफी समानताए दिखाई देती है। हमारे शास्त्रों मे 9 नंबर का बहुत महत्व है।
     108 पादा = 1 + 0 + 8 = 9 
     27 नक्षत्र = २ + 7 = 9 
     360° = 3 + 6 + 0 = 9 


ज्यामितीय पज़ल 'श्री यंत्र' 108 अंक का रहस्य 

दुनिया का सबसे बड़ा ज्यामितीय पज़ल 'श्री चक्र' जो हिंदू धर्म मे सर्वाधिक पूजनीय है वो भी 9 त्रिकोणो से ही बना होता है।
   
हिन्दू धर्म में 108 अंक पवित्र क्यों माना जाता है।
 
इससे यह सिद्ध होता है जब हम 108 रुद्र्राक्ष बीज/तुलसी बीज/मोती की माला के द्वारा जप करते है या ईश्वर को याद करते है तब हम वास्तिवकता मे 9 ग्रहो, 12 राशियों, 27 नक्षत्रो और 108 पादा के द्वारा सम्पूर्ण सृस्टि से प्राथना करते है, और उस साकार या निराकार परब्रह्म से किसी ना किसी रूप मे जुड़ जाते है। 

यही कारण है जो हमारे विद्वान ऋषि मुनियों ने 108 अंक का महत्व जो इस सृस्टि के सम्पूर्ण चक्र को परिभाषित करता है उसे वैज्ञानिक और गणितिय आधार पर समझ कर मानव जाती को प्रदान किया।  

अंत मे निष्कर्ष 


हमारा आध्यात्मिक ज्ञान पूर्ण रूप से वैज्ञानिक और तर्कों पर ही आधारित है। मनुष्य को आधुनिक विज्ञानं आज बता रहा है जिन रहस्यों को उन सभी रहस्यों को हमारे ऋषि और विद्वानों ने अपने ग्रंथो मे उनका विस्तार पूर्वक वर्णन कर दिया था। इसका सबसे बड़ा उदहारण तो वो पंचाग है जिससे सभी ग्रहो की दशा और उनकी गति का अध्यन किया जाता है जो सम्राट विक्रमादित्य के समय से यथावत चला आ रहा है। ये हम सब का कर्तव्य है की हम उस ज्ञान का आदर करे और उसका लाभ प्राप्त करे।

Post a Comment

Plz do not enter any spam link in the comment box.

और नया पुराने