भगवान विष्णु को कैसे मिला सुदर्शन चक्र, इसकी कथा।

सुदर्शन चक्र की कथा 

शिव ओर विष्णु दोनों एक दूसरे के पूरक है। दोनों एक दूसरे मे पूर्ण रूप से समाहित है। परन्तु हमे पूर्ण ज्ञान ना होने के कारण ये दोनों एक होते हुए भी हमे अलग-अलग दिखाई देते है। 

संसार मे कर्म के सिद्धांत को स्थापित करने के लिए ये दोनों लीलाये करते रहते है। जहां ये दोनों कभी एक दूसरे के स्वामी और कभी एक दूसरे के भक्त बन जाते है। सुदर्शन चक्र की उत्पति भी इसी दिव्य लीला का ही वरदान है। 

सदा शिव और श्री हरि  

एक बार जब दैत्यों के अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गए, तब सभी देवता एकत्रित होकर श्रीहरि विष्णु के पास गये। सभी ने श्रीहरि से जगत की रक्षा के लिये दैत्यों का संहार करने के कहा। 

दैत्यों के वध के लिए एक उत्तम आयुध की कामना से भगवान विष्णु ने कैलाश पति भगवान शिव की विधिपूर्वक आराधना प्रारम्भ की। वे प्रतिदिन हजार नामों से शिव की स्तुति करने लगे, और प्रत्येक नाम पर एक कमल पुष्प भगवान शिव को अर्पित करने लगे। 

तब भगवान शंकर ने श्री विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके द्वारा लाए एक हजार कमल में से एक कमल का फूल छिपा दिया। शिव की माया के कारण श्री हरि को यह पता नहीं चला। एक कमल पुष्प कम पाकर भगवान विष्णु उसे ढूँढने लगे। परंतु पुष्प कही नहीं मिला। 

तब विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिए अपना एक नेत्र निकालकर शिव को अर्पित करने का निश्चय किया। क्योंकि भगवान विष्णु जी की आंखों को कमल के समान सुंदर माना जाता है इसीलिए उन्हें कमलनयन और पुण्डरीकाक्ष भी कहा जाता है। 

विष्णु जी जैसे ही अपनी आंख भगवान को चढ़ाने के लिए तैयार हुए, वैसे ही वहां स्वंय शिवजी प्रकट हुए और बोले कि इस पूरे संसार में तुम्हारे समान मुझे कोई दूसरा प्रिय नहीं है।

Sudarshan Chakra


उस दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी थी लेकिन खुद भगवान शिव ने कहा कि अब से इस दिन को पूरा संसार बैंकुठ चतुर्दशी के रुप में मनाएगा। साथ ही कहा कि जो इस व्रत के दिन पहले आपका और बाद में मेरा पूजन करेगा उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। 

भगवान शिव ने विष्णु जी से प्रसन्न होकर उन्हे सुदर्शन चक्र भी प्रदान किया और उन्होंने सुदर्शन चक्र को देते हुए कहा- हे देवेश! यह सुदर्शन नाम का श्रेष्ठ आयुध बारह अरों, छह नाभियों एवं दो युगों से युक्त, तीव्र गतिशील और समस्त आयुधों का नाश करने वाला है।

सज्जनों की रक्षा करने के लिए इसके अरों में देवता, राशियां, ऋतुएं, अग्नि, सोम, मित्र, वरुण, शचीपति इन्द्र, विश्वेदेव, प्रजापति, रुद्र, धन्वन्तरि, तप तथा चैत्र से लेकर फाल्गुन तक के बारह महीने प्रतिष्ठित हैं। आप इसे लेकर समस्त आसुरी शक्तियो का संहार करें। इस प्रकार सुदर्शन चक्र श्रीहरि के स्वरूप के साथ सदैव के लिए जुड़ गया।

Sudarshan Chakra


अंत मे निष्कर्ष 

शिव और विष्णु तो एक ही है, जो इस सृष्टि को चलने के लिये तरह तरह की लीलाये करते रहते है। जो भक्त भक्ति के रहस्य को समझते है उन्हे इन दोनों मे कोई भेद नहीं पता है परन्तु जो इस रहस्य को नहीं समझते है वो इन दोनों मे कौन श्रेष्ठ है इसी मे ही उलझे रहते है। 

इन दोनों की इसी एकरूपता का उदहारण भगवान विट्ठल और नरहरि की कथा है जिसका Web Link ऊपर दिया गया है। उसे जरूर पढ़े ताकि आप इस रहस्य को समझ सके।

Post a Comment

Plz do not enter any spam link in the comment box.

और नया पुराने