भवानि शङ्करौ वन्दे श्रध्दा विश्वास रूपिणौ |
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम् ||
हम माँ भवानी और शिव जी की वंदना करते है। श्रद्धा का नाम माँ पार्वती और विश्वास का नाम शिव है। और इस श्रद्धा-विश्वास की प्रतीक विग्रह की मूर्ति को ही हम मंदिरों में स्थापित करते हैं। इनके चरणों पर हम अपना मस्तक झुकाते, जलाभिषेक करते, बेलपत्र चढ़ाते और आरती करते है। और इसी श्रद्धा-विश्वास के बल पर ही मनुष्य भगवान को प्राप्त कर लेता है।
शिव-तत्व का रहस्य क्या है?
शिव कौन है शिव तत्व क्या है? क्या शिव केवल सृष्टि के संहार तक ही सीमित हैं। इस सृष्टि में शिव का क्या महत्व है। इस सृष्टि का संबंध शिव से क्या है, क्या यह सृष्टि शिवतत्व के आधीन है क्या शिव तत्व को जाने बिना इस सृष्टि को समझना संभव ही नही है। शैव दर्शन के अनुसार इस सृष्टि मे ३६ प्रकार के तत्त्व होते हैं। इन्हे हम मुख़्यता तीन भागों द्वारा समझ सकते हैं। (१) शिवतत्व, (२) विद्यातत्व और (३) आत्मत्व।
"शिवतत्व" में शिवतत्व और शक्तितत्व दोनो का अंतर्भाव होता है। परमशिव प्रकाशविमर्शमय है। इसी प्रकाशरूप को शिवतत्व और विमर्शरूप को शक्तितत्व कहते हैं। यही विश्व की सृष्टि, स्थिति और संहार के रूप में प्रकट होती है। बिना शक्ति के शिव को अपने प्रकाश रूप का ज्ञान नहीं होता।
जब शिव ही अपने अंत:स्थित अर्थतत्व को बाहर निकालने के लिये उन्मुख होते है, तब उनका बाहरी रूप ही शक्ति कहलाता है। यह दुनिया सिर्फ भौतिकता तक ही सीमित है। हमारे देखने, सुनने और स्पर्श करने की शक्तियां यहां तक मन भी सिर्फ भौतिक चीज़ों को ही समझ सकता है। हमारे द्वारा बनाया गया कोई भी उपकरण सिर्फ भौतिक चीज़ों को समझ सकता है, तो फिर वह जो भौतिक से परे है, उसकी प्रकृति क्या है?
क्या यही शिव तत्व है। अगर हम इस भौतिकता से थोड़ा आगे जाएं, तो सब कुछ शून्य हो जायेगा। शून्य का अर्थ है पूरा खालीपन यानी एक ऐसी स्थिति जहां भौतिक कुछ भी नहीं है। वहां आपकी ज्ञानेंद्रियां भी बेकाम हो जाती हैं। अगर आप इस शून्य से परे जाएं, तो आपको जो मिलेगा, उसी से हम शिव रूप को जान सकते हैं। किन्तु यह भी एक सीमित तरीका ही है।
शिव का अर्थ है, जो नहीं है। जो नहीं है, वो शून्य है अगर उस तक आप पहुंच पाएंगे, तो आप देखेंगे कि इसकी प्रकृति भौतिक नहीं है। इसका अर्थ है इसका अस्तित्व नहीं है। पर ऐसा कैसे हो सकता है? यह आपके तार्किक दिमाग के दायरे में नही आयेगा।
आधुनिक विज्ञान मानता है कि इस पूरी संरचना को इंसान के तर्कों पर खरा उतरना होगा, लेकिन जीवन को देखने का यह एक बेहद सीमित तरीका है। क्योकि यह संपूर्ण सृष्टि मानव बुद्धि के तर्कों पर कभी भी खरी नहीं उतर सकती। हमारा दिमाग इस सृष्टि में तो फिट हो सकता है, परन्तु यह सृष्टि हमारे दिमाग में कभी भी फिट नहीं हो सकती।
इसलिए तर्क इस अस्तित्व के केवल उन पहलुओं का ही विश्लेषण कर सकता हैं, जो भौतिक हैं। एक बार अगर आपने भौतिक पहलुओं को पार कर लिया, तो आपके तर्क पूरी तरह से उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर हो जाएगा।
संसार में तीन प्रकार के कार्य निरंतर चलते रहते हैं उत्पत्ति, पालन और संहार। इन्हीं तीन भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए इन्हे तीन नाम दे दिए गए हैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश। विष्णु सतगुणमूर्ति हैं, ब्रह्मा रजोगुणमूर्ति और शिव तामसगुणमूर्ति हैं।
एक-दूसरे से स्नेह के कारण एक-दूसरे का ध्यान करने से शिव गोरे हो गए और विष्णु का रंग काला हो गया। शिव तामसी गुणों के अधिष्ठाता हैं। तामसी गुण यानी निंदा, क्रोध, मृत्यु, अंधकार आदि। तामसी भोजन यानी कड़वा, विषैला आदि।
जिस अपवित्रता से, जिस दोष के कारण किसी वस्तु से घृणा की जाती है, शिव उसकी ओर बिना ध्यान दिए उसे धारण कर उसे भी शुभ बना देते हैं। समुद्र मंथन के समय निकले विष को धारण कर वे नीलकंठ कहलाए। मंथन से निकले अन्य रत्नों की ओर उन्होंने देखा तक नहीं। जिससे जीव की मृत्यु होती है, वे उसे भी जय कर लेते हैं। तभी तो उनका नाम मृत्य़ु़ंजय है। यही शिव तत्व का आधार है।
अंत मे निष्कर्ष
शिव आरम्भ, अंत और मध्य इन तीनो का ही प्रारंभिक केंद्र बिंदु है। शिव तत्व सृष्टि को वो रहस्य है, जो प्रकृति और पुरुष के अंतर को मिटाकर उसकी एकरूपता को स्थापित करता है। शिव ही ब्रह्मा के रूप मे सृष्टि का निर्माण, विष्णु के रूप मे रूप मे उसमे जीवन का संचार, और शंकर के रूप मे इस सृष्टि का अंत करते है। इसीलिये शास्त्रों मे ब्रह्मा, विष्णु और महेश का एक रूप मे प्रगट होना ही शिव कहा गया है, इसलिये शिव को जानने के बाद कुछ भी जानना शेष नहीं रहता है।
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