राम नाम वो शब्द जो हमारी संस्कृति का प्रचायक है। जो इस कदर समाहित है की एक दूसरे का प्रारूप बन गये है। शायद अब इनकी अलग-अलग कल्पना करना संभव भी नहीं है। राम भारतवर्ष की आत्मा है। राम के बिना तो भारत की कल्पना करना संभव ही नही है। क्योकि आत्मा के बिना शरीर जीवित ही नही रह सकता।
भगवान शिव राम की महिमा बताते हुऐ माँ भवानी से कहते है :-
राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ॥
राम नाम एक बार स्मरण करने से विष्णुसहस्त्र नाम जप का पुण्य मिल जाता है यही राम नाम की महिमा है।
जिससे ये सम्पूर्ण जगत ही नही वरण ये संपूर्ण सृस्टि ही राम के आगे नतमस्तक हो जाती है। और राम को अपने ह्र्दय मे ईश्वर की सर्वोच्च सत्ता के रूप मे स्थापित कर देती है। अगर कोई ये कहे की उसने राम को जान लिया है और वो राम को परिभाषित कर सकता है। तो ये समझ लेना चाहिये वो संपूर्ण रूप से असत्य बोल रहा है।
क्योकि राम को समझना तो शायद भगवान शंकर के लिये भी संभव ना हो। राम के गुण राम की तरह ही अनंत है कोई भी व्यक्ति चाहे वो विद्वान ही क्यों ना हो धर्म की सूक्ष्म व्याख्या को समझे बिना राम के एक भी गुण का वर्णन नही कर सकता। तो फिर राम को परिभाषित करना तो अकल्पना ही है।
राम के द्वारा किये गये कार्यों को जब तक हम सांसारिक मोह और साधारण व्यक्तित्व की आँखों से देखने का प्रयास करगे तब तक हम राम के उन संदेशो को नही समझ पायगे जो राम ने अपने भिन्न-भिन्न रूपों मे हमे देने का प्रयास किया है। राम ने अपनी जीवन यात्रा मे कई चरित्रों को जिया है और उनकी भिन्न-भिन्न मर्यादाओं को पूर्ण सिद्ध किया है। गुरु शिष्य की मर्यादा, पिता पुत्र की मर्यादा, भाई का भाई के प्रति स्नेह, मित्र का मित्र के प्रति कर्तव्य, पति का पत्नी के प्रति कर्तव्य, शत्रु के प्रति मर्यादित रहना और राजा का दृष्टांत।
अंत मे निष्कर्ष
राम के इन गुणों को एक-एक करके अपने अगले ब्लॉग मे अपनी क्षुद्र बुद्धि द्वारा परिभाषित करने का प्रयास करूँगा। जिनका Web Link ऊपर दिया गया है। श्री राम मेरा मार्गदर्शन करे और शिव शंकर माँ भावनी अपना आशीर्वाद प्रदान करे।
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