Shiv ke barah jyotirlingo ka varnan


शिव के बारह ज्योर्तिलिंग का वर्णन करने से पहले हमे शिव को समझना होगा की शिव कौन है शिव शब्द का क्या अर्थ है। क्योकि जब हम ‘शिव’ कहते हैं तो वास्तव मे हमारा इशारा दो प्रकार की बुनियादी चीजों की तरफ होता है। जो प्रत्यक्ष है और जो प्रत्यक्ष नहीं है यहाँ ‘शिव’ का शाब्दिक अर्थ है - ‘जो नहीं है'। और जो नहीं है वो ही जो प्रत्यक्ष है उसे भी अपने अंदर समेटे हुए है। 


आज के इस आधुनिक विज्ञान ने भी यह साबित किया है कि इस सृष्टि में सब कुछ शून्यता से प्रगट होता है और फिर वापस उसी शून्यता में ही समा जाता है। इसलिये इस अस्तित्व का आधार और संपूर्ण ब्रम्हांड का मौलिक गुण ही एक विराट शून्यता ही है। उसमें मौजूद सभी आकाशगंगाएं केवल छोटी-मोटी गतिविधियां मात्र हैं, जो किसी फुहार की भाती हैं, और इन सबके अलावा केवल एक खालीपन है, जो सब कुछ अपने अंदर समाये हुऐ है, और यही खालीपन शिव के नाम से जाना जाता है। शिव ही वो गर्भ हैं, जिसमें से सब कुछ जन्म लेता है, और अंत मे सब कुछ फिर से उन्ही मे समा जाता है। सब कुछ शिव से आता है, और फिर से शिव में ही चला जाता है।


शिव के बारह ज्योर्तिलिंग कौन से है?

शिव का नाम अक्सर शंकर के साथ जोड़ा जाता है, लोग उन्हे - शिव शंकर भोलेनाथ से सम्बोधित करते है। इस तरह अनजाने ही लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताने लगते हैं। जबकि वास्तव में, दोनों की प्रतिमाएं भी अलग-अलग आकृति की होती हैं। जहाँ शंकर को हमेशा एक तपस्वी के रूप में दिखाया जाता है, कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है।


शिव ने सृष्टि की स्थापना, पालन और उसके विनाश के क्रम के लिए क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और महेश (महेश भी शंकर का ही नाम है) नामक तीन शक्तियों के रूप मे स्वयं को प्रगट किया। इसलिये शिव ब्रह्मांड के रचयिता, पालनहार और उसके विनाशक हुए। इन्ही तीनो शक्तियों का एकात्मक रूप ही शिव है जिन्हे महादेव भी कहा जाता है।


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शिव को पुराणों मे अर्द्धनारीश्वर भी कहा गया है, इसका अर्थ यह नहीं है कि शिव केवल आधे पुरुष ही हैं या उनमें संपूर्णता नहीं है। दरअसल, यह शिव ही हैं, जो आधे होते हुए भी पूर्ण हैं। इस सृष्टि के आधार और रचयिता यानी प्रकृति (स्त्री) - नर (पुरुष) शिव और शक्ति का ही स्वरूप हैं। इनके मिलन और सृजन से ही यह संसार संचालित और संतुलित रहता है। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। यहाँ नारी प्रकृति है और नर पुरुष। 


प्रकृति के बिना पुरुष का कोई अर्थ नही और पुरुष के बिना प्रकृति का कोई अर्थ नहीं है। अर्धनारीश्वर शिव इसी पारस्परिकता का प्रतीक हैं। आधुनिक समय में स्त्री-पुरुष की बराबरी पर जो इतना जोर दिया जाता है, उसे शिव के इस स्वरूप में बखूबी देखा और समझा जा सकता है। यह स्वरूप बताता है कि शिव जब शक्ति युक्त होते है तभी वह समर्थ है। शक्ति के अभाव में शिव 'शिव' न होकर केवल 'शव' रह जाते है। 


सौराष्ट्रे सोमनाथं श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोंकारंममलेश्वरम्॥

परल्यां वैद्यनाथं डाकिन्यां भीमशंकरम्। सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारं घुश्मेशं शिवालये॥

एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥


1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, गुजरात

 

पहला ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मन्दिर गुजरात के (सौराष्ट्र) प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र के अन्तर्गत प्रभास में विराजमान हैं। जब प्रजापति दक्ष ने चन्द्रमा को श्राप दे दिया था जिससे उन्हे क्षय रोग हो गया था, तब चंद्र देवता ने इसी स्थान पर शिव आराधना का करके अपने रोग से मुक्ति पाई थी।


2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, आन्ध्र प्रदेश

 

यह ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल पर्वत पर श्रीमल्लिकार्जुन विराजमान हैं। इसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता हैं। जब एक समय कार्तिकेय माता पिता से रूठ कर श्रीशैल पर्वत पर चले गये तब भगवान शिव और माता पार्वती उनसे मिलने गये थे। कार्तिकेय की प्रार्थना पर शिव और पार्वती उसी पर्वत पर मल्लिकार्जुन के नाम से प्रतिष्ठित हो गये। यहाँ मल्लिका का अर्थ माता पार्वती और अर्जुन का अर्थ शिव है।


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3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, उज्जैन, मध्य प्रदेश

 

तृतीय ज्योतिर्लिंग महाकाल या ‘महाकालेश्वर’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह स्थान मध्य प्रदेश के उज्जैन में है, जिसे प्राचीन साहित्य में अवन्तिका पुरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां भगवान महाकालेश्वर का भव्य ज्योतिर्लिंग विद्यमान है। यहाँ शिव शंकर ने दूषण नामक दैत्य का वध किया था और महाकाल के नाम से प्रतिष्ठित हो गये थे।


4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश

 

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ ही ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग भी स्थित है। इन दोनों शिवलिंगों की गणना एक ही ज्योतिर्लिंग में की जाती है। ओंकारेश्वर स्थान भी मालवा क्षेत्र में ही पड़ता है। यह स्थान नर्मदा नदी के किनारे पर बसा है।


5. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग: झारखण्ड

 

पंचम ज्योतिर्लिंग ‘वैद्यनाथ’ को माना गया हैं। यह स्थान झारखण्ड प्रान्त के संथाल परगना में जसीडीह रेलवे स्टेशन के समीप में है। पुराणों में इस जगह को चिताभूमि कहा गया है। यह शिवलिंग रावण लंका ले जा रहा था जिसे शिव ने रावण से लंका से पहले कही पर नहीं रखने के लिये कहा था परन्तु लघुशंका लगने पर उसे यही स्थापित करना पड़ा था, भगवान श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर जिस स्थान पर अवस्थित है, उसे ‘वैद्यनाथधाम’ कहा जाता है।


6. भीमशंकर ज्योतिर्लिंग, डाकिनी, महाराष्ट्र

 

इस ज्योतिर्लिंग का नाम ‘भीमशंकर’ है, जो डाकिनी पर अवस्थित है। यह स्थान महाराष्ट्र में मुम्बई से पूर्व तथा पूना से उत्तर की ओर स्थित है, जो भीमा नदी के किनारे सहयाद्रि पर्वत पर हैं। भीमा नदी भी इसी पर्वत से निकलती है। भारतवर्ष में प्रकट हुए भगवान शंकर के बारह ज्योतिर्लिंग में श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग का छठा स्थान हैं। यहाँ पर शिव ने कुम्ब्करण के पुत्र भीम का वध किया था।


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7. रामेश्वर ज्योतिर्लिंग, तमिलनाडु

 

सप्तम ज्योतिर्लिंग ‘रामेश्वर’ हैं। रामेश्वरतीर्थ को ही सेतुबन्ध तीर्थ भी कहा जाता है। यह स्थान तमिलनाडु के रामनाथम जनपद में स्थित है। यहां समुद्र के किनारे भगवान रामेश्वरम का विशाल मन्दिर शोभित है। यह हिंदुओं के चार धामों में से एक धाम है। यह तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम ज़िले में स्थित है। मन्नार की खाड़ी में स्थित द्वीप जहां भगवान् राम का लोकप्रसिद्ध विशाल मंदिर है। यह ज्योतिर्लिंग भगवान राम से समुंद्र पर सेतु निर्माण के समय शिव आराधना करके स्थापित किया था।


8. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, बड़ौदा, गुजरात

 

नागेश नामक ज्योतिर्लिंग जो गुजरात के बड़ौदा क्षेत्र में गोमती द्वारका के समीप है, आठवां ज्योतिर्लिंग है। इस स्थान को दारूकावन भी कहा जाता है, यहाँ महादेव ने दारुक नमक राक्षस का वध किया था। कुछ लोग दक्षिण हैदराबाद के औढ़ा ग्राम में स्थित शिवलिंग का नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मानते हैं। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात प्रान्त के द्वारकापुरी से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 


9. विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, काशी, उत्तर प्रदेश
 

नवमं ज्योतिर्लिंग काशी में विराजमान ‘विश्वनाथ’ को कहा गया है। कहते हैं, काशी तीनों लोकों में सबसे न्यारी नगरी है, जो भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजती है। सृष्टि के अंत समय पर भी कशी का अंत नहीं होता। विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद के काशी नगर में अवस्थित है। इसे आनन्दवन, आनन्दकानन, अविमुक्त क्षेत्र तथा काशी आदि अनेक नामों से भी जाना जाता है।


10. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, नासिक, महाराष्ट्र

 

दशमं ज्योतिर्लिंग को ‘त्र्यंबकेश्वर’ के नाम से जाना जाता है। यह नासिक ज़िले में पंचवटी से लगभग अठारह मील की दूरी पर है। यह मन्दिर ब्रह्मगिरि के पास गोदावरी नदी कें किनारे पर स्थित है। इसे त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग या त्र्यम्बकेश्वर शिव मन्दिर भी कहते है। यहां ब्रह्मगिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी निकलती है। जिस प्रकार उत्तर भारत में प्रवाहित होने वाली पवित्र नदी गंगा का विशेष आध्यात्मिक महत्त्व है, उसी प्रकार दक्षिण में प्रवाहित होने वाली इस पवित्र नदी गोदावरी का विशेष महत्त्व है। यहाँ गौतम ऋषि ने शिव आराधना करके गौ हत्या के पाप से मुक्ति पाई थी। इस शिवलिंग पर ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनो के अंगूठे के निशान मौजूद है।


11. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तराखंड

 

यह ज्योतिर्लिंग हिमालय की चोटी पर विराजमान श्री ‘केदारनाथ’ धाम मे है। श्री केदारनाथ को ‘केदारेश्वर’ भी कहा जाता है, जो केदार नामक शिखर पर विराजमान है। इस शिखर से पूर्व  दिशा में अलकनन्दा नदी के किनारे भगवान श्री बद्री विशाल का मन्दिर है। जो कोई व्यक्ति बिना केदारनाथ भगवान का दर्शन किए यदि बद्रीनाथ क्षेत्र की यात्रा करता है, तो उसकी यात्रा निष्फल अर्थात व्यर्थ हो जाती है। इसी स्थान पर नर और नारायण ने तपस्या की थी। पांडवो ने वनवास काल मे शिव दर्शन की इच्छा से आराधना की थी परन्तु शिव उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे।तब भगवान शिव एक बैल के रूप में वहा से जाने लगे, उन्हें वहा से जाता देख भीम ने उस बैल की पूंछ को पकड़ लिया जिससे पीछे का कूबड़ वाला हिस्सा केदरनाथ में स्थापित हो गया और मुख वाला हिस्सा पशुपति नाथ के रूप में नेपाल में स्थापित हो गया। लेकिन ज्योतिर्लिंग की मान्यता केवल केदारनाथ को है पशुपति नाथ को नहीं है।


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12. घृश्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र

 

एकादशवां ज्योतिर्लिंग ‘घृश्णेश्वर है। यह स्थान महाराष्ट्र क्षेत्र के अन्तर्गत दौलताबाद से लगभग अठारह किलोमीटर दूर ‘बेरूलठ गांव के पास है। इस स्थान को ‘शिवालय’ भी कहा जाता है। घृश्णेश्वर को लोग घुश्मेश्वर और घृष्णेश्वर भी कहते हैं। घृश्णेश्वर  से लगभग आठ किलोमीटर दूर दक्षिण में एक पहाड़ की चोटी पर दौलताबाद का क़िला मौजूद है। यहाँ धुश्मा नामक ब्राह्मण स्त्री की आराधना से प्रसन्न होकर शिव ने उसके पुत्र की रक्षा की थी। 




अंत में निष्कर्ष 


शिव सनातन धर्म की आत्मा है और शिव के ये बारह ज्योतिर्लिंग सनातन संस्कृति का प्रतीक है। शिव शब्द के दो अर्थ है – योगी शिव और शून्यता – ये एक तरह से एक दूसरे के पर्यायवाची हैं, पर फिर भी ये दो अलग-अलग पहलू हैं। क्योंकि भारतीय संस्कृति द्वंद्व से भरी हुई है, इसलिए हम एक पहलू से दूसरे पहलू पर आते-जाते रहते हें। एक पल हम परम तत्व शिव की बात करते हैं, तो अगले ही पल हम उन योगी शिव की बात करने लगते हैं, जिन्होंने हमें योग का उपहार दिया है।     



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