श्री दुर्गा सप्तश्लोकी का पाठ माँ दुर्गा का सबसे उत्तम स्त्रोत्र है। ऐसा शास्त्रों में वर्णित है, स्वयं भगवान शिव ने भी दुर्गा सप्तश्लोकी को सभी मंत्रो से श्रेष्ठ बताया है। दुर्गा सप्तश्लोकी के पाठ से जो पुण्य प्राप्त होता है, वो कभी समाप्त नहीं होता, ऐसा शास्त्र प्रमाण है।
शास्त्रों में ऐसा वर्णित है की जब भगवान शिव ने माता दुर्गा से अपने भक्तों के उपाय पूछा की कैसे उनके जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहे और उनके कार्य बिना किसी अड़चन और विघ्नबाधा के पुरे होते रहे, तब माँ दुर्गा चण्डिके भवानी ने स्वयं भगवान शिव को यह दुर्गा सप्तश्लोकी स्त्रोत सुनाया था। और कहा था जो भी यह दुर्गा सप्तश्लोकी का पाठ करेगा जो दुर्गा सप्तशति के समान है, मै उसके समस्त कष्टों को दूर कर दूंगी और वह जब तक इस संसार में रहेगा उसके सभी कार्य बिना किसी विघ्नबाधा के पुरे होते रहेंगे। तो चलिए हम दुर्गा शाप्त्श्लोकी इन सात मंत्रो को भक्ति भावमय होकर ग्रहण करते हैं।
श्री दुर्गा सप्तश्लोकी का पाठ
श्री दुर्गा सप्तश्लोकी माता दुर्गा का सबसे शक्तिशाली वरदायनी स्तोत्र है। इस स्त्रोत में माँ दुर्गा के सभी रूपों का वर्णन है तथा श्रीमहाकाली, श्री महालक्ष्मी और श्री महासरस्वती का संपूर्ण सार समाहित है। दुर्गा सप्तश्लोकी के इन सात श्लोकों में माँ दुर्गा के सभी रूपों का वर्णन है। दुर्गा सप्तश्लोकी पाठ देवी के सात अलग-अलग अवतारों में उनकी सात राक्षसों पर विजय का वर्णन करता है।
शिव उवाच
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी। कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः।।
हिंदी अर्थ:- शिवजी बोले, हे देवि! तुम भक्तों के लिये सुलभ हो और समस्त कर्मों का विधान करनेवाली हो। कलियुग में कामनाओं की सिद्धि हेतु यदि कोई उपाय हो तो उसे अपनी वाणी द्वारा सम्यक् रूप से व्यक्त करो।
देव्युवाच
शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्। मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते।।
हिंदी अर्थ:- देवी ने कहा, हे देव! आपका मेरे ऊपर बहुत ही स्नेह है। कलियुग में समस्त कामनाओं को सिद्ध करनेवाला जो साधन है वह मैं बतलाती हूँ, सुनो! उसका नाम है ‘अम्बास्तुति’।
विनियोग
ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः अनुष्टप् छन्दः, श्रीमह्मकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवताः, श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः।
हिंदी अर्थ:- इस दुर्गासप्तश्लोकी स्तोत्र मन्त्र के ऋषि नारायण हैं, छन्द अनुष्टुप् है और देवता श्रीमहाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती हैं। श्रीदुर्गा की प्रसन्नता के लिये सप्तश्लोकी दुर्गापाठ में इसका विनियोग किया जाता है।
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥१॥
हिंदी अर्थ:- भगवती महामाया देवी ज्ञानियों के भी चित्त को बलपूर्वक खींचकर मोह में डाल देती हैं॥१॥
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता॥२॥
हिंदी अर्थ:- माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दुःख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि! आपके अतिरिक्त अन्य कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिये सदा ही दया से द्रवीभूत रहता हो॥२॥
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥३॥
हिंदी अर्थ:- हे नारायणी! तुम हर प्रकार का मंगल प्रदान करनेवाली मंगलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थों को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली गौरी! तुम्हें नमस्कार है॥३॥
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते॥४॥
हिंदी अर्थ:- शरण में आये हुए दीन-दुखी एवं पीड़ितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीड़ा दूर करनेवाली नारायणी देवि! तुम्हें नमस्कार है॥४॥
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते। भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते॥५॥
हिंदी अर्थ:- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दुर्गे देवि! हर प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करो। तुम्हें नमस्कार है॥५॥
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥६॥
हिंदी अर्थ:- देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में आये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं॥६॥
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥७॥
हिंदी अर्थ:- हे सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो॥७॥
इति श्री दुर्गा सप्तश्लोकी सम्पूर्णं।
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