आप सबने जब भी हनुमान चालीसा पढ़ी होगी उसमे एक चौपाई आती है "अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता" हनुमान जी के पास अष्ट सिद्धियाँ और नौ निधियाँ थी, जिनकी साहयता से हनुमानजी कोई भी असंभव कार्य संभव कर लेते थे। ऐसा ही एक वरदान उन्हें माता सीता से भी प्राप्त हुआ था। हनुमानजी के गुरु सूर्य देव थे, जिनसे हनुमानजी ने सभी प्रकार की विधियाए और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया था। हनुमान जी को सूर्य देव से आठ सिद्धियां और नव निधियाँ प्राप्त हुई थी। जिनके प्रभाव से वह किसी भी व्यक्ति का रूप धारण कर सकते थे। अति सूक्ष्म से लेकर अति विशाल तक, वे शरीर धारण कर सकते थे। मन की शक्ति से क्षण भर में जहाँ चाहे वहाँ पहुँच सकते थे। भगवान हनुमान जी की वे आठो सिद्धियाँ और नौ निधियाँ कौन सी है जानते है।
हनुमानजी की अष्ट सिद्धियाँ और नव निधियाँ कौन सी है?
हनुमानजी की अष्ट सिद्धियाँ
हनुमानजी के पास अष्टसिद्धियों का वरदान हैं जो हनुमानजी प्रसन्न होने पर अपने सभी भक्तों को देते हैं। शास्त्रों में अष्ट सिद्धियो के बारे में जो बताया गया है उसके अनुसार अगर किसी एक व्यक्ति को सिद्ध हो जाए तो वह मन चाहा कोई भी कार्य कर सकता है। आइए जानते हैं कौन सी हैं ये अष्ट सिद्धियाँ।
अणिमा: आठ सिद्धियों में से पहली अणिमा है। इसका अर्थ है अपने शरीर को सूक्ष्म अणु के बराबर बनाने की शक्ति। जिस प्रकार परमाणु को सामान्य नेत्रों से नहीं देखा जा सकता, उसी प्रकार अनिमा सिद्धि की प्राप्ति के बाद कोई दूसरा आपको नहीं देख सकता। आपके शरीर को आप जितना चाहें उतना सूक्ष्म बनाया जा सकता है।
महिमा: अणिमा के ठीक विपरीत सिद्धि, महिमा है। इससे शरीर को असीमित विस्तार दिया जा सकता है। शरीर को किसी भी हद तक बड़ा किया जा सकता है।
गरिमा: इस सिद्धि के बल पर शरीर का भार असीमित रूप से बढ़ाया जा सकता है। इसमें शरीर का आकार वही रहता है, लेकिन वजन इतना बढ़ जाता है कि कोई आपको हिला भी नहीं सकता।
लघिमा: गरिमा के ठीक विपरीत लघिमा में शरीर के भार को लगभग समाप्त किया जा सकता है। इसमें शरीर इतना हल्का हो जाता है कि इसे हवा से भी तेज उड़ाया जा सकता है। इसी सिद्धि के बल पर हनुमानजी सूर्य को निगलने उसके पास तक पहुंच गए थे।
प्राप्ति: इस सिद्धि में व्यक्ति बिना रुके किसी भी स्थान पर जा सकता है। आप अपनी इच्छानुसार अदृश्य हो सकते हैं।
प्राकाम्य: इस सिद्धि के बल पर दूसरे व्यक्ति के मन को समझा जा सकता है। सामने वाला क्या सोच रहा है, क्या चाहता है, किस मकसद से आपके पास आया है। यह सब प्राकाम्य सिद्धि से संभव है।
ईशित्व: इस सिद्धि से व्यक्ति ईश्वर तुल्य पद प्राप्त कर सकता है। जिसके पास यह सिद्धि है उसकी दुनिया पूजा करती है।
वशित्व: इस सिद्धि के द्वारा किसी को भी अपना दास बनाया जा सकता है। जिसके पास यह सिद्धि है वह किसी को भी अपने वश में कर सकता है। इसी का प्रयोग करके हनुमानजी ने सभी नव ग्रहों को रावण से मुक्त कराया था।
हनुमानजी की नव निधियाँ
हनुमानजी के पास अष्टसिद्धि के साथ नवनिधि भी हैं जो हनुमानजी प्रसन्न होने पर अपने भक्तों को देते हैं। शास्त्रों में नवनिधि के बारे में जो बताया गया है उसके अनुसार अगर किसी एक व्यक्ति को यह मिल जाए तो उसे जीवन भर किसी चीज की कमी नहीं होती है। आइए जानते हैं कौन सी हैं वो नवनिधि यानि नौ निधियां।
पद्म निधि: पद्म निधि के गुणों से संपन्न व्यक्ति सात्विक गुण का हो तो उसका अर्जित धन भी सात्त्विक होता है। सात्विक रूप से अर्जित धन से कई पीढ़ियों तक धन और अन्न की कमी नहीं रहती। ऐसे व्यक्ति सोने और चांदी के रत्नों से संपन्न होते हैं और उदारता से दान भी करते हैं।
महापद्म निधि: महापद्म निधि भी पद्म निधि की तरह ही सभी सात्विक गुणों से युक्त होती है। हालांकि इसका असर केवल सात पीढ़ियों तक ही रहता है उसके बाद इसका असर नहीं रहता है। इस कोष से संपन्न व्यक्ति भी दाता होता है और सात पीढ़ियों तक सुख और ऐश्वर्य का भोग करता है।
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नील निधि: नील निधि में सत्त्व और रज दोनों गुण मिले हुए हैं। ऐसा वयक्ति व्यापार से ही अत्यधिक धन प्राप्त करता है, अतः इस निधि से संपन्न व्यक्ति में दोनों गुणों की प्रधानता होती है। इस निधि का प्रभाव केवल तीन पीढ़ियों तक रहता है।
मुकुंद निधि: मुकुंद निधि में रजोगुण प्रधान होता है, इसलिए इसे राजसी स्वभाव वाली निधि कहा जाता है। इस निधि से संपन्न व्यक्ति या साधक का मन भोग में लगा रहता है। यह निधि एक पीढ़ी के बाद समाप्त हो जाता है।
नंद निधि: नंद निधि में रज और तम गुणों का मिश्रण है। ऐसा माना जाता है कि यह निधि साधक को लंबी आयु और निरंतर प्रगति प्रदान करती है। ऐसे निधि से संपन्न व्यक्ति उसकी प्रशंसा से प्रसन्न होता है।
मकर निधि: मकर निधि को तामसी निधि कहते हैं। इस निधि से संपन्न साधक वह है जो शस्त्र और शस्त्र एकत्र करता है, ऐसा व्यक्ति राजा या शासन को अपने हाथ में रखने वाला होता है। वह शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है और युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहता है।
कच्छप निधि: कच्छप निधि का साधक अपने धन को छिपाकर रखता है। वह न तो इसका उपयोग करता है और न ही इसकी अनुमति देता है। वह सांप की तरह उसकी रक्षा करता है। ऐसा व्यक्ति धन होने के बावजूद उसका उपभोग नहीं कर पाता है।
शंख निधि: शंख निधि को धारण करने वाला व्यक्ति स्वयं की चिंता करता है और अपने भोग की कामना करता है। वह बहुत कमाता है, लेकिन उसके परिवार के सदस्य गरीबी में रहते हैं। ऐसा व्यक्ति धन का प्रयोग अपने सुख के लिए करता है, जिससे उसका परिवार गरीबी में रहता है।
खर्व या मिश्रित निधि: खर्व निधि को मिश्रित निधि भी कहा जाता है।इसके नाम के अनुसार इस निधि से संपन्न व्यक्ति अन्य आठ निधियों का सम्मिश्रण होता है। इस निधि से संपन्न व्यक्ति मिश्रित स्वभाव का कहा जाता है। उसके कार्यों और प्रकृति की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती।
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