जन्म कुंडली मे भाव और भावेश को कैसे देखे।

दोस्तों भगवान ने मनुष्य को बहुत अधिक क्षमताये प्रदान की है, जिससे वह चाहे तो प्रकर्ति पर भी विजय प्राप्त कर सकता है। हमारे प्राचीन ग्रंथो मे ऐसे बहुत से उदाहरण है जो मानव की असीमित शक्तियों का प्रदर्शन करती है। वर्तमान समय मे भी इंसान इसी और प्रयास रत है। विज्ञानं एक सम्भावनाओ का क्षेत्र है, जहाँ नई-नई संभावनाओं को तर्कों के द्वारा आधार दिया जाता है। 

जन्म कुंडली मे भाव और भावेश को कैसे देखे।   


हिन्दू ज्योतिष शास्त्र की उत्पत्ति प्राचीन वेद ऋग्वेद से हुई है, इसलिए इसे वैदिक ज्योतिष भी कहा जाता है। ज्योतिष विज्ञानं भी आधुनिक विज्ञानं की भाती ही सम्भावनाओ को ही प्रगट करता है, जो किसी इंसान की कुंडली द्वारा उसके जीवन मे होने वाली घटनाओँ का आकलन करता है। 

अक्सर कई लोगों के मन में अवधारणा होती है कि ये तारे, गृह और नक्षत्र हमारे सम्पूर्ण भाग्य का निर्धारण कैसे कर सकते है, उनका यह तर्क भी सही और आप उन लोगों से सहमत भी हो सकते है, कि तारे, गृह और नक्षत्र मिलकर हमारे भाग्य का निर्धारण नहीं कर सकते है, क्यूंकि ये वास्तव मे निर्धारक नहीं अपितु संकेतक मात्र हैं। 

हम इसे इस प्रकार समझ सकते है, जैसे अगर आसमान मे हमे बदल दिख रहें है तो हम कहगे कि आज बारिश होने की सम्भावना है, उसी प्रकार मौसम में आये बदलाव को देखकर हम आंधी और तूफान का अनुमान लगा लेते है। जब कहीं पर भी भूकंप आता है, अक्सर वहां के पशु पक्षियों में बहुत सी बेचैनी देखी जाती है।
 

यही वो सब संकेत होते है जिनसे हम अनुमान लगाते है, और जब हम ये तर्क दे रहे होते है, तो उस वक्त हम अन्धविश्वासी नहीं हो रहे होते हैं लेकिन जब हम ज्योतिष के आधार पर कुछ अनुमान लगाते है तो फिर हम अन्धविश्वासी  कैसे हो सकते है। ज्योतिष भी एक विज्ञान ही है जिसे हमारे महान ऋषि मुनियों ने इस संसार के कल्याण के लिए ग्रंथो मे संकलित कर इस संसार को दिया है। 



जन्म कुंडली मे भाव और भावेश को कैसे देखे।

कुंडली मे भावों का महत्व वैदिक ज्योतिष के अनुसार 


प्रत्येक जन्म कुंडली में बारह खाने बने होते हैं जिन्हें ज्योतिष मे भाव कहा जाता है। जन्म कुण्डली को अलग – अलग स्थानों पर अलग-अलग तरह से बनाया जाता है। जैसे भारतीय पद्धति तथा पाश्चात्य पद्धति।। भारतीय पद्धति में भी उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय से कुंडली बनाई जाती है। 

जन्म कुंडली को बनाने के लिए हम बारह राशियों का प्रयोग करते है, जो की मेष राशि शुरू होकर मीन राशि पर समाप्त होती हैं। इन बारह अलग भावों में बारह अलग-अलग राशियाँ आती है। प्रत्येक भाव में एक ही राशि आती है। वयक्ति के जन्म के समय जिस भी राशि का उदय होता है वह राशि कुंडली के पहले भाव में आती है और उसे ही लगन कहा जाता है। 

इसी प्रकार अन्य राशियाँ फिर क्रम से विपरीत दिशा में चलती है, उदाहरण के तौर पर यदि पहले भाव में मिथुन राशि आती है, तो दूसरे भाव में कर्क राशि आएगी और इसी तरह से बाकी राशियाँ भी चलेगी जो अंतिम और बारहवें भाव में वृष राशि के साथ समाप्त होगी। 

कुंडली का पहला भाव 


प्रत्येक जन्म कुंडली में पहला भाव यानि लग्न को विशेष महत्व दिया जाता है। क्योंकि यह मनुष्य के व्यक्तित्व, स्वभाव, आयु, यश, सुख और मान-सम्मान आदि बातों का ज्ञान कराता है। पहले भाव को हम लग्न या तनु भाव से भी सम्बोधित करते है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का संपूर्ण दर्शन उसके लग्न भाव पर ही निर्भर करता है। पहले भाव का कारक गृह सूर्य को कहा जाता है। इस भाव से हम व्यक्ति की शारीरिक संरचना, उसके रुप, रंग, ज्ञान, स्वभाव, बाल्यावस्था और उसकी आयु आदि का विचार करते है। पहले भाव मे जिस राशि का उदय होता है उसके स्वामी को लग्नेश का कहा जाता है। यदि लग्न भाव का स्वामी कोई क्रूर ग्रह भी हो तो भी वह हमेशा अच्छा फल ही देता है।

कुंडली का दूसरा भाव 


जन्म कुंडली से दूसरे भाव को हम कुंटुंब भाव और धन भाव के रूप मे देखते है। यह जातक की कुंडली मे धन से संबंधित सभी मामलों को दर्शाता है, जिसका हमारे जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। इसके अलावा दूसरे भाव से हम परिवार, चेहरा, दाईं आँख, वाणी, जीवन मे अर्जित धन, आर्थिक और आशावादी दृष्टिकोण को भी देखते है। यह भाव हमारे सीखने की क्षमता, चल संपत्ति, पत्र व दस्तावेजो का प्रतिनिधित्व भी करता है। दूसरे भाव को कुंडली मे एक मारक भाव भी कहा जाता है। इस भाव का कारक ग्रह बृहस्पति को माना गया है। 

कुंडली का तीसरा भाव 


जन्म कुंडली में तीसरा भाव वीरता और साहस का भाव माना जाता है। यह हमारी बोलचाल की शैली और अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किये जाने वाले सभी प्रयासों, उसकी इच्छा शक्ति तथा छोटे भाई बहनो से सम्बंध को दर्शाता है। तीसरे भाव से हम विभिन्न माध्यमों को भी व्यक्त कर सकते है - धैर्य भाव, बुरे विचार, स्तन, कान, विशेषकर के दायां कान, वीरता, पराक्रम और मानसिक शक्ति। आठवे भाव से आठवा होने के कारण तीसरा भाव जातक की आयु और चौथे भाव से बाहरवां होने के कारण हम माता की आयु का विचार भी इसी भाव से कर सकते है। इस भाव का कारक स्वामी मंगल गृह को माना गया है।

कुंडली का चौथा भाव 


जन्म कुंडली में चौथा भाव जातक की प्रसन्नता और उसके सुख का भाव कहा जाता है। इसे हम माता के भाव के तौर पर भी जान सकते है। इस भाव के द्वारा हम निजी जीवन, घर में आपकी छवि, माता के साथ आपके संबंध, परिवार के अन्य सदस्यों के साथ आपके संबंध, सुख-सुविधाएँ और स्कूली व शुरुआती शिक्षा के सम्बन्ध मे विचार करते है। काल पुरुष कुंडली में चौथे भाव पर कर्क राशि का नियंत्रण रहता है और इस राशि का स्वामी ग्रह चंद्रमा होता है।

कुंडली का पांचवा भाव 


जन्म कुंडली में पांचवे भाव को मुख्य रूप से संतान और ज्ञान के भाव के रूप मे देखा जाता है। यह भाव किसी भी जातक के ग्रहण करने की मानसिक क्षमता को दर्शाता है कि आप आसानी से किसी विषय की गूढ़ता को कितनी बारीकी से जान सकते हैं या नहीं। कुंडली में पांचवे भाव को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है - जैसे सम्राट बनने की निशानी, कर, बुद्धि, बच्चे, पुत्र, पेट, वैदिक ज्ञान, पारंपरिक कानून, पूर्व में किये गये हमारे पुण्य कर्म। इस भाव का कारक गृह बृहस्पति होता है।


जन्म कुंडली मे भाव और भावेश को कैसे देखे।
 

कुंडली का छठा भाव 


वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में छठे भाव को हम रोग, कर्ज और शत्रुओं के भाव के रूप मे जानते है। यह कालपुरुष की कुंडली का सबसे अधिक विरोधाभासी भाव होता है। यह भाव रोगों को जन्म देता है लेकिन वहीं यह स्वस्थ होने की शक्ति को भी प्रदान करता है। इस भाव से लोन या कर्ज मिलता है वहीं यह भाव कर्ज को चुकाने की क्षमता को भी दर्शाता है। छठा भाव शत्रुओं को भी दर्शाता है लेकिन विरोधियों से लड़ने की ताकत और साहस को भी प्रदर्शित करता है। छठे भाव की विभिन्न तरीकों से व्याख्या की जाती है - जैसे ऋण, अस्त्र, रोग, कष्ट, शत्रु, द्वेष,  पाप, दुष्कर्त्य, भय और तिरस्कार। वैदिक ज्योतिष के अनुसार इस भाव का कारक ग्रह मंगल को माना गया है।
  

कुंडली का सातवां भाव 


जन्म कुंडली में सातवां भाव व्यक्ति के वैवाहिक जीवन, जीवनसाथी तथा उसके व्यवसायिक पार्टनर, नैतिक और अनैतिक रिश्ते के विषय का ज्ञान कराता है। वैदिक शास्त्रों में मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को बताये गये हैं। इनमें काम का संबंध सातवे भाव से ही होता है। कुंडली में सातवां भाव केन्द्रीय भावों की श्रेणी में आता है। इसलिए यह व्यक्ति के जीवन में उसके निजी और कार्यक्षेत्र के बीच के तालमेल को प्रमुख रूप से दर्शाता है। इस भाव का कारक ग्रह शुक्र को माना गया है। 

कुंडली का आठवां भाव 


जन्म कुंडली में आठवे भाव को मुख्य रूप से जातक की आयु के भाव रूप मे देखा जाता है। जहाँ पहला भाव व्यक्ति के देह धारण को दर्शाता है, वहीं आठवां भाव व्यक्ति के देह त्यागने का निर्धारण कराता है। सनातन परंपरा के अनुसार, कुंडली में अष्टम भाव से जीवन के अंत को दर्शाता है, इसलिए इस भाव को अशुभ भाव भी कहा जाता है। मुख्यत इस भाव से हम आयु, गुप्तांग, मृत्यु, उपहार, बिना कमाये प्राप्त होने वाली संपत्ति, मृत्यु का कारण, इच्छाये, अपमान, पतन, शमशान घाट, पराजय, दुख, आरोप, नौकर एवं बाधाओं को देखते है। कुंडली मे शनि को भाव के कारक ग्रह के रूप मे माना गया है।  

कुंडली का नवम भाव 


वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में नवम भाव भाग्य को दर्शाता है। जिस व्यक्ति का नवम भाव अच्छा होता है वह व्यक्ति भाग्यवान कहलाता है। इसके साथ ही नवम भाव से व्यक्ति के धार्मिक दृष्टिकोण का भी पता चलता है। यह भाव जातक के लिए बहुत ही शुभ होता है। इस भाव के अच्छा होने से जातक हर क्षेत्र में तरक्की करता है। आचार्य, पिता, शुभता, पूर्व का भाग्य, पूजा, तप, धर्म, पौत्र, दैविक उपासना, आर्य वंश तथा भाग्य आदि को नवम भाव से ही दर्शाया जाता है। इस भाव का कारक ग्रह बृहस्पति होता है। 

कुंडली का दशम भाव 


ज्योतिष में हम दशम भाव को कालपुरुष की कुंडली का कर्म भाव भी कहते है। यह भाव व्यक्ति की उपलब्धि, उसकी ख़्याति, शक्ति, प्रतिष्ठा, रैंक, विश्वसनीयता, आचरण और महत्वाकांक्षा को दर्शाता है। मुख्य रूप से हम इस भाव के माध्यम से जातक के कार्यक्षेत्र का विचार करते है। इस भाव के कारक ग्रह अधिक हैं - गुरु, सूर्य, बुध और शनि के पास दसवें घर का कारकत्‍व है। हम जो सोचते हैं वही हम बनते हैं। यह भाव हमारी सोच को कर्म में बदलने वाला भाव है। हमारा हर तरह का कर्म दसवें भाव से ही प्रेरित होता है। 

कुंडली का ग्यारहवां भाव 


ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में एकादश भाव जातक की आमदनी और लाभ का भाव होता है। यह भाव व्यक्ति की कामना, उसकी आकांक्षा एवं इच्छापूर्ति को दर्शाता है। किसी व्यक्ति के द्वारा किए गए प्रयासों में उसे कितना लाभ प्राप्त होगा, इसका आकलन हम ग्यारहवें भाव से करते है। एकादश भाव लाभ, आय, प्राप्ति, सिद्धि, वैभव आदि को दर्शाता है। इस भाव का कारक ग्रह बृहस्पति है।

कुंडली का बाहरवां भाव 


वैदिक ज्योतिष में कुंडली के बाहरवे भाव को हम जातक की व्यय और हानि के भाव के रूप मे देखते है। यह कालपुरुष की कुंडली मे अलगाव एवं अध्यात्म का भी भाव होता है। यह भाव उन सभी अंधेरे स्थानों का प्रतिनिधित्व करता है जो मुख्य रूप से हमारे समाज से पृथक रहते हैं। क्योकि ऐसी जगह जाकर व्यक्ति समाज से ख़ुद को अलग महसूस करता है। कुंडली में बारहवें भाव का संबंध जातक के स्वप्न एवं उसकी निद्रा से भी होता है। इस भाव का कारक ग्रह शनि को माना गया है। 

अंत मे निष्कर्ष 


वैदिक ज्योतिष सनातन संस्कृति की एक प्राचीन धरोहर है, जिसे हमारे ऋषियों ने हजारों वर्षो के ज्ञान और अनुभव के आधार पर विकसित किया था। जो प्रारम्भ से ही मानव समाज के लिये सही दिशा का निर्धारण करती रही है, और आज भी विश्वास और अन्धविश्वास की परिधि मे झूलती हुई भी अपने आप को स्थिर बनाये हुऐ है। जिसका अपना गणित, अपना विज्ञानं और अपने तर्क है, जो प्राचीनतम है और अपने मूल स्वरूप मे आज भी विधमान है। ये हो सकता है की उन्हे अपने ज्ञान के आधार पर परखते हुऐ हमारे अनुभव करने के तरीके मे अवश्य परिवर्तन आया हो। 

Post a Comment

Plz do not enter any spam link in the comment box.

और नया पुराने