भारत हमेशा से ही त्योहारों का देश माना गया है। यहाँ की संस्कृति और यहाँ के रीति रिवाज़ हमेशा से सभी के लिये आकर्षण का केंद्र रहे है। हिन्दुस्तान मे मनाये जाने वाला हर त्यौहार अपने आप मे एक अनूठा उत्सव होता है, जो अपने अन्दर भारतीय समाज और सनातन संस्कृति की एक अमिट छाप को संजोय रखता है। 

रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है, इसका पौराणिक महत्व क्या है।

यहाँ मनाये जाने वाले हर त्यौहार के पीछे एक कहानी है जो भारतीय संस्कृति और हमारे सामाजिक मूल्यों को जीवंत बनाये रखती है। इन्ही त्यौहार मे एक त्यौहार रक्षा बंधन को मानते है, जो भाई और बहन के अनूठे सम्बन्ध को दर्शाता है। जहाँ बहन अपने भाई की कलाई पर एक धागा बांधकर इस रिश्ते को एक सामाजिक विस्तार प्रदान करती है। यही विस्तार तो इस रिश्ते को इतना गहरा कर देता है, जहाँ उम्र और धर्म भी इसमे विलीन हो जाते है।

रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है, इसका पौराणिक महत्व 


 रक्षा बंधन कब है 

22 अगस्त 2021 

 रक्षा बंधन का दिन 

सोमवार  

 रक्षा बंधन का मुहर्त 

सुबह 9:27 बजे से रात 9:11 बजे तक

 मुहर्त का कुल समय 

11 घंटे 43 मिनट

 रक्षा बंधन का अपरान्ह मुहुर्त

दोपहर 1:45 से 5:23

 रक्षा बंधन का प्रदोष मुहुर्त

शाम 7:01 से 21:11



रक्षा बंधन का पौराणिक महत्व 


दूसरे त्योहारों की भाति रक्षा बंधन भी अपने पीछे एक रोचक पौराणिक कहानी को संजोय हुऐ है, जहाँ से इस आत्मीय सम्बन्ध को एक नये रूप मे स्थापित करने का चलन प्रारम्भ हुआ। रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है, इसका जिक्र हमारे पौराणिक साहित्य भागवत पुराण और विष्णु पुराण मे मिलता है। इस त्यौहार की भूमिका भगवान विष्णु के देवताओं के कहने पर वामन अवतार धारण करने से शुरू होती है।

वामन भगवान का अवतार लेना  


यह कथा इस प्रकार है, जब देवताओं से युद्ध मे हारने पर दैत्यों की शक्ति समाप्त हो गयी, तब दैत्यों के तेजस्वी गुरु शुक्राचार्य ने दैत्यों के राजा बलि से ऐसे सौ यज्ञों का अनुष्ठान करने का संकल्प लिया जिसके प्रभाव से देवताओं का तेज़ क्षीण हो जाएगा और इंद्र का पद सदा के लिये दैत्यों के अधीन हो जायेगा।

शुक्राचार्य के इस कृत्य से धीरे - धीरे देवताओं का तेज़ क्षीण होने लगा और दैत्यों का बल बढ़ने लगा। दैत्यों की ताकत इस प्रकार बढ़ने से सृष्टि मे अनाचार भी बढ़ने लगे, इससे सभी देवता स्वयं को असुरक्षित महसूस करने लगे। तब सभी देवताओं ने यह निश्चय किया की वे सभी भगवान विष्णु से साहयता के लिये आग्रह करेगे। 

सभी ने श्री हरी से प्रार्थना की हे सर्वेश्वर आप हमारी और इस सम्पूर्ण सृष्टि की रक्षा कीजिये यदि शुक्राचार्य ने अपने कृत्यों द्वारा बलि को इंद्र पद पर आसीन करा दिया तो तीनो लोको मे असुरो का वर्चस्व स्थापित हो जायेगा और इस सृष्टि मे पाप और अनाचार सर्वत्र व्याप्त हो जायेगा, इसलिये इस समय आपका हस्तक्षेप करना उचित है। देवताओं की इस प्रकार प्रार्थना करने पर जगत्पति श्री विष्णु ने देवमाता अदिति के गर्भ से वामन भगवान के रूप मे अवतार लिया। 

वामन भगवान का राजा बलि की यज्ञ शाला मे जाना 


वामन भगवान एक छोटे बटुक ब्राह्मण के रूप मे राजा बलि की यज्ञ शाला मे उस समय पहुंचे जब शुक्राचार्य बलि से अंतिम यज्ञ का संकल्प करा रहे थे। उसी समय वामन भगवान ने राजा बलि से दक्षिणा के रूप मे तीन पग धरती के लिये याचना की, शुक्राचार्य अपने तपोबल के प्रभाव से वामन के रूप मे श्री हरि को पहचान गये। तब शुक्राचार्य ने बलि को वामन का भेद बताकर उन्हे दक्षिणा देने से मना किया, की वे दो पग मे ही इस सम्पूर्ण सृष्टि को नाप लेगे और जिससे तुम्हरा सारा वैभव समाप्त हो जायेगा। 

परन्तु राजा बलि बहुत ही धर्मात्मा थे और वह भक्त प्रहलाद के पौत्र भी थे इसलिये अपने द्वार पर आये हुऐ याचक को खली हाथ नहीं लौटा सकते थे, साथ ही वह यह भेद जानकर की वामन रूप मे स्वयं भगवान विष्णु है, जिनकी इच्छा मात्र से कई सृष्टियाँ प्रगट और विलीन हो जाती है, जिनकी प्राप्ति कई जन्मो की तपस्या के बाद भी नहीं होती, वे आज एक भिक्षुक के रूप मे बलि के द्वार पर खड़े है। राजा बलि इस क्षण को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहता था इसलिये उसने अपने गुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी वामन भगवान को दान देने का निश्चय किया।

वामन भगवान द्वारा तीन पग मे सृष्टि को मापना 


राजा बलि ने संकल्प करके वामन से तीन पग धरती को मापने के लिये कहा, तब श्री हरी ने अपना विराट सवरूप प्रगट कर पहले ही पग मे सम्पूर्ण पृथ्वी को माप लिया और दूसरे पग मे सवर्ग लोक को, जिससे राजा बलि का सारा वैभव समाप्त हो गया। अब तीसरा पग रखने की कोई जगह नहीं बची तब बलि ने अपना वचन पूरा करने के लिये वामन भगवान से तीसरा पग अपने मस्तक पर रखने को कहा जिससे राजा बलि पाताल को चले गये। राजा बलि के उस सर्वोच्च दान से ही "बलिदान" शब्द को अस्तित्व प्राप्त हुआ।

भगवान विष्णु राजा बलि के इस वचन पालन से अत्यधिक प्रसन्न हुऐ, तब उन्होने राजा बलि को वरदान देते हुऐ कहा हे बलि जिस इंद्र पद के लिये तुम यज्ञ कर रहे थे वो तुम्हे मे प्रदान करता हु मेरे वरदान से सावर्णि मन्वन्तर मे तुम्हे इंद्र का पद प्राप्त होगा, तब तक तुम पाताल मे निवास करो। राजा बलि ने कहा हे प्रभु अब मेरे सारा वैभव और शक्ति क्षीण हो चुकी है, इसलिये इंद्र अब कभी भी मेरे प्राण ले सकता है, आप मेरी रक्षा के लिये मेरे साथ पाताल मे ही निवास कीजिये। राजा बलि की भक्ति से प्रसन्न हो श्री विष्णु ने उसकी रक्षा का वचन दे उसकी इच्छा अनुसार पाताल मे निवास करना स्वीकार किया।

रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है, इसका पौराणिक महत्व क्या है।

माता लक्ष्मी का साहयता के भगवान शिव के पास जाना 


अपने वचन अनुसार भगवान विष्णु वैकुण्ठ को छोड़कर पाताल मे निवास करने लगे जिससे माता लक्ष्मी चिंतित रहने लगी। श्री हरी के अपने निवास पर ना होने से सृष्टि मे असंतुलन उत्पन्न हो गया। तब माता लक्ष्मी परम पिता ब्रह्मा के पास जाकर श्री हरी को वचन से मुक्त करने का उपाय पूछने लगी, परन्तु ब्रह्मा जी इसमे असमर्थ थे तब माता अंत मे भगवान शिव के पास गयी और उनसे श्री विष्णु को बलि को दिये हुऐ अपने वचन से मुक्त करने का उपाय करने की प्राथना की। तब भगवान शिव ने इसका उपाय बताकर माता लक्ष्मी को एक ब्राह्मण स्त्री के रूप मे राजा बलि के पास भेजा। 

रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है, इसका पौराणिक महत्व क्या है।

माता लक्ष्मी का सर्वप्रथम राजा बलि को "रक्षा बंधन" राखी बांधना 


भगवान शिव से उपाय को सुनकर तब माता लक्ष्मी एक ब्राह्मण स्त्री का वेश बनाकर राजा बलि के पास पाताल लोक मे गयी। वहां जाकर उन्होने राजा बलि से अपनी सहयता का वचन मांगा और उन्हे अपना धर्म भाई मानकर उनकी कलाई मे रक्षा बंधन का प्रतीक एक धागा बंधा। तब राजा बलि ने उस धागे की मर्यादा मे बंधकर ब्राह्मण स्त्री रूप धारण माता लक्ष्मी को उनकी रक्षा का वचन दिया। वचन लेकर तब माँ लक्ष्मी ने सृष्टि के संतुलन को बनाये रखने के लिये भगवान विष्णु को उन्हे दिये गये वचन से मुक्त करने को कहा।

तब राजा बलि ने अपना वचन पालन करते हुऐ भगवान विष्णु को अपने वचन से मुक्त कर दिया, तब श्री हरि ने भाई बहन के इस सम्बन्ध "रक्षा बंधन" को अमर बनने का वरदान दिया तथा राजा बलि को प्रत्येक वर्ष चार माह के लिये उसके यहाँ माता लक्ष्मी सहित निवास करने वचन भी दिया। तभी से रक्षा बंधन को मनाया जाता है, जिसमे भाई हर संकट के समय अपनी बहन की रक्षा का वचन देकर उसे निर्भय करता है। तभी से यह परम्परा हमारी संस्कृति का एक अटूट हिस्सा बन गई है।

अंत मे निष्कर्ष 


ये सभी त्यौहार हमारी संस्कृति की एक पहचान है, जो सदिया बीतने के बाद भी अपनी पहचान को बनाये हुऐ है। आज भले ही समय के अनुसार हमारे विचारो और रहन सहन मे परिवर्तन आया हो परन्तु रक्षा बंधन जैसे हमारे त्योहारों के सामाजिक मूल्यों मे कोई परिवर्तन नहीं आया है। जो आज भी इस समाज मे रिश्तो की मर्यादा को जीवंत बनाये हुऐ है।          

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