भगवान विष्णु के दशावतारो की कहानी क्या है।

भगवान श्रीहरि विष्‍णु इस सम्पूर्ण सृष्टि के रक्षक और पालनहार है, जो धर्म की रक्षा हेतु हर युग में अवतार धारण करते है। वैसे तो भगवान विष्णु ने अनेको अवतार लिये हैं लेकिन उनमें से दश अवतार ऐसे हैं, जो प्रमुख रूप से अत्यधिक पूजनीय हैं, और जिनके प्रति साधारण जनमानस में अकूट आस्था है। 

भगवान विष्णु के दशावतारो की कहानी क्या है।


यहां हम इस लेख में भगवान श्रीहरि विष्णु के ऐसी ही 10 प्रमुख अवतारों या दशावतारो की पौराणिक एवं प्रामाणिक कथाओं का वर्णन कर रहे है। 


1. मत्स्य अवतार (समय - सत युग)  


पुराणों के अनुसार भगवान श्री विष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए मत्स्य के रूप में पहला अवतार लिया था। जो उनके दशावतारों में प्रथम माना जाता है, इसकी कथा के अनुसार - कृतयुग के अंत में राजा सत्यव्रत हुए थे। एक दिन राजा सत्यव्रत नदी में स्नान कर सूर्य को जलांजलि दे रहे थे। तभी अचानक उनकी अंजलि में एक छोटी सी मछली आ गई। उन्होंने सोचा उसे वापस जल में डाल दूं, लेकिन उस मछली ने राजा से कहा - आप मुझे जल में मत डालिए अन्यथा बड़ी मछलियां मुझे खा जाएंगी। तब राजा सत्यव्रत ने उस मछली को अपने राज महल में रख लिया। जब मछली एक दिन में बड़ी हो गई तो राजा ने उसे अपने सरोवर में रख दिया, परन्तु देखते ही देखते मछली और बड़ी हो गई। राजा को समझ आ गया कि यह कोई साधारण जलचर जीव नहीं है। राजा ने उस मछली से अपने वास्तविक स्वरूप में आने की प्रार्थना की। 


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राजा की प्रार्थना को सुन साक्षात चारभुजाधारी भगवान श्री विष्णु प्रकट हो गए और उन्होंने कहा कि यह मेरा मत्स्यावतार है। भगवान ने सत्यव्रत से कहा- सुनो सत्यव्रत! आज से सात दिन के बाद प्रलय होगी। और समस्त लोक जल में डूब जायगे, तब मेरी प्रेरणा से एक विशाल नौका तुम्हारे पास आएगी। तब तुम सप्त ऋषियों, औषधियों, समस्त बीजों व प्राणियों के सूक्ष्म शरीरो को लेकर उसमें बैठ जाना, जब तुम्हारी नाव डगमगाने लगेगी, तब मैं इसी मत्स्य रूप में तुम्हारे पास आऊंगा। उस समय तुम वासुकि नाग से उस नाव को मेरे सींग से बांध देना। उस समय तुम जो प्रश्न पूछोगे तब मैं तुम्हें उत्तर दूंगा, जिससे मेरी वास्तविक महिमा जो नाम परब्रह्म तुम्हारे ह्रदय में प्रकट हो जाएगी। तब समय आने पर मत्स्यरूप धारण करके भगवान विष्णु ने राजा सत्यव्रत को तत्वज्ञान का उपदेश दिया और सृष्टि को प्रलय के जल से बचाया, भगवान की यह कथा मत्स्यपुराण के नाम से प्रसिद्ध है।


2. वराह अवतार (सत युग)


धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने अपने दशावतारों में दूसरा अवतार वराह रूप में लिया था। वराह अवतार से जुड़ी कथा इस प्रकार है- पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर क्षीर सागर में छिपा दिया था तब देवताओ की प्रार्थना पर भगवान ब्रह्मा की नाक से वराह के रूप में प्रकट हुए। भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की। सबके आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया। अपनी थूथनी की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर निकाल लाए। जब हिरण्याक्ष दैत्य ने यह देखा तो उसने वराह रूपी भगवान विष्णु को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया। इसके बाद भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया।


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3. भगवान नृसिंह (सत युग)


भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार जो दशावतारों में तीसरा है, उसे धारण करके अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिये दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। इस अवतार की कथा इस प्रकार है - धर्म ग्रंथों के अनुसार दैत्यों का राजा हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान से भी अधिक बलवान मानने लगा था। उसने मनुष्य, देवता, पक्षी, पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से मरने का वरदान ब्रह्मा जी से प्राप्त किया था। उसके राज में जो भी भगवान विष्णु की पूजा करता था उसको वह दंड देता था। उसके पुत्र का नाम प्रहलाद था। प्रहलाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था।


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यह बात जब हिरण्यकशिपु का पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुआ और प्रहलाद को समझाने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी जब प्रहलाद नहीं माना तो हिरण्यकशिपु ने उसे मृत्युदंड दे दिया। परन्तु वह हर बार भगवान विष्णु के चमत्कार से वह बच जाता था। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रहलाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई। तब भी भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गया और होलिका जल गई। जब हिरण्यकशिपु ने स्वयं प्रहलाद को मारने का निश्चय किया तब भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु का वध कर प्रहलाद की रक्षा की।


4. कूर्म अवतार (सत युग)


धार्मिक शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुए) का अवतार जिसे दशावतारों में चौथा अवतार कहा जाता है उसे लेकर समुद्र मंथन में देवताओ और दानवो की सहायता की थी। भगवान विष्णु के इस कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहा जाता हैं, यह उनके दशावतारों में तीसरा अवतार है। इसकी कथा इस प्रकार है - एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवताओं के राजा इन्द्र को श्राप देकर उसे श्रीहीन कर दिया था। तब इन्द्र भगवान विष्णु के पास गए और उनसे साहयता मांगी तो भगवान ने उन्हें समुद्र मंथन करने के लिए कहा। इन्द्र भगवान विष्णु के कहे अनुसार दैत्यों व देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए। 

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समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया गया। देवताओं और दैत्यों ने अपना मतभेद भुलाकर मंदराचल को उखाड़ा और उसे समुद्र की ओर ले चले, लेकिन वे उसे अधिक दूर तक नहीं ले जा सके। तब भगवान विष्णु ने मंदराचल को समुद्र तट पर रख दिया। देवता और दैत्यों ने मंदराचल को समुद्र में डालकर नागराज वासुकि को नेती बनाया। किंतु मंदराचल के नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा। यह देखकर भगवान विष्णु विशाल कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र में मंदराचल को अपनी पीठ पर आधार प्रदान किया। भगवान कूर्म  की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घुमने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन का कार्य संपन्न हुआ।


5. वामन अवतार (त्रेता युग)


त्रेतायुग में प्रहलाद के पौत्र दैत्यराज बलि ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया था। सभी देवता इस विपत्ति से बचने के लिए भगवान विष्णु के पास साहयता के लिये गए। भगवान विष्णु ने कहा कि मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से अवतार लेकर तुम्हें स्वर्ग का राज्य दिलाऊंगा। कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु ने वामन के रूप में अवतार लिया। एक बार जब राजा बलि महान यज्ञ कर रहा था तब भगवान वामन बलि की यज्ञशाला में गए और राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी। 


राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला को समझ गए और उन्होंने बलि को दान देने से मना कर दिया। लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प कर लिया। तब भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक को नाप लिया। जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा। बलि के सिर पर पग रखने से वह पाताल लोक को पहुंच गया। बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे पाताल लोक का स्वामी बना दिया और सावर्णि मन्वन्तर में इंद्र का पद प्रदान करने का वरदान भी दिया। इस तरह भगवान वामन ने देवताओं की सहायता कर उन्हें स्वर्ग पुन: लौटाया।

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6 . परशुराम अवतार (त्रेता युग)


सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के प्रमुख दशावतारों में से एक थे। भगवान परशुराम के जन्म की कथा इस प्रकार है। प्राचीन समय में महिष्मती नगरी पर शक्तिशाली हैययवंशी क्षत्रिय कार्तवीर्य अर्जुन (सहस्त्रबाहु) का शासन था। वह बहुत अभिमानी और अत्याचारी भी। एक बार अग्निदेव ने उससे भोजन कराने का आग्रह किया। तब सहस्त्रबाहु ने घमंड में आकर कहा कि आप जहां भी चाहें, वहां से भोजन को प्राप्त कर सकते हैं, समस्त पृथ्वी पर मेरा ही राज है। तब अग्निदेव ने वनों को जलाना शुरु कर दिया। एक वन में उसी समय ऋषि आपव तपस्या कर रहे थे। अग्नि ने उनके आश्रम को भी जला डाला। इससे क्रोधित होकर ऋषि ने सहस्त्रबाहु को श्राप दिया कि भगवान विष्णु, परशुराम के रूप में जन्म लेंगे और न ही सिर्फ सहस्त्रबाहु का बल्कि समस्त अभिमानी क्षत्रियों का भी सर्वनाश करेंगे। इस प्रकार भगवान विष्णु ने भार्गव कुल में महर्षि जमदग्रि के पांचवें पुत्र के रूप में जन्म लिया।


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7. श्रीराम अवतार (त्रेता युग)


त्रेतायुग में राक्षसराज रावण का बहुत बड़ा आतंक था। उससे सभी देवता भी डरते थे। उसके वध के लिए भगवान विष्णु ने राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या के गर्भ से पुत्र के रूप में जन्म लिया। इस अवतार में भगवान विष्णु ने अनेक राक्षसों का वध किया और मर्यादा का पालन करते हुए एक आदर्श प्रस्तुत किया। पिता के कहने पर वनवास गए और वनवास भोगते समय राक्षसराज रावण उनकी पत्नी सीता का हरण करके ले गया। सीता की खोज में भगवान लंका तक पहुंचे, वहां भगवान श्रीराम और रावण का घोर युद्ध हुआ जिसमें रावण मारा गया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने राम के रूप में अवतार लेकर देवताओं को भय मुक्त किया।


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8. श्रीकृष्ण अवतार (द्वापर युग)


द्वापरयुग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लेकर अधर्मियों का विनाश किया। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा कारागार में हुआ था। इनके पिता का नाम वसुदेव और माता का नाम देवकी था। भगवान श्रीकृष्ण ने इस अवतार में अनेक चमत्कार किए और दुष्टों का सर्वनाश किया। कंस का वध भी भगवान श्रीकृष्ण ने ही किया। महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथि बने और दुनिया को गीता का ज्ञान प्रदान किया। धर्मराज युधिष्ठिर को राजा बना कर धर्म की स्थापना की। भगवान विष्णु का ये अवतार सभी अवतारों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।


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9. बुद्ध अवतार (कल युग)


बौद्धधर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध भी भगवान विष्णु के ही अवतार माने जाते है। पुराणों में वर्णित भगवान बुद्धदेव का जन्म गया के समीप कीकट में हुआ बताया गया है और उनके पिता का नाम अजन बताया गया है। यह प्रसंग पुराण वर्णित बुद्धावतार का ही है। एक समय दैत्यों की शक्ति बहुत बढ़ गई। देवता भी उनके भय से भागने लगे। राज्य की कामना से दैत्यों ने देवराज इन्द्र से पूछा कि हमारा साम्राज्य स्थिर रहे, इसका उपाय क्या है। तब इन्द्र ने शुद्ध भाव से बताया कि सुस्थिर शासन के लिए यज्ञ एवं वेदविहित आचरण आवश्यक है। तब दैत्य वैदिक आचरण एवं महायज्ञ करने लगे, जिससे उनकी शक्ति और बढऩे लगी। 

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तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने देवताओं के हित के लिए बुद्ध का रूप धारण किया। उनके हाथ में एक मार्जनी थी जिससे वे मार्ग को बुहारते हुए चलते थे। इस प्रकार भगवान बुद्ध दैत्यों के पास पहुंचे और उन्हें उपदेश दिया कि यज्ञ करना पाप है। यज्ञ से जीव हिंसा होती है। यज्ञ की अग्नि से कितने ही प्राणी भस्म हो जाते हैं। भगवान बुद्ध के उपदेश से दैत्य प्रभावित हुए। उन्होंने यज्ञ व वैदिक आचरण करना छोड़ दिया। इसके कारण उनकी शक्ति कम हो गई और देवताओं की शक्ति पुन: बढ़ने लगी।


10. कल्कि अवतार (कल युग)


धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु कलयुग में कल्कि रूप में अवतार लेंगे। कल्कि अवतार कलियुग व सतयुग के संधिकाल में होगा। यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। पुराणों के अनुसार उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले के शंभल नामक स्थान पर विष्णुयशा नामक तपस्वी ब्राह्मण के घर भगवान कल्कि पुत्र रूप में जन्म लेंगे। कल्कि अपने देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर संसार से समस्त पापियों का विनाश करेंगे और धर्म की पुन:स्थापना करेंगे, तभी उसके बाद सतयुग का प्रारंभ होगा। 


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अंत मे निष्कर्ष  

 

भगवान विष्णु को सभी देवताओ मे सबसे अधिक पूज्य माना जाता है। जो सबसे अधिक दयालु और तुरंत कृपा करने वाले होते है, उनका यही सरल स्वभाव ही है, जो वो इसी प्रकार समय-समय पर अवतरित होकर दुष्टो का विनाश, धार्मिक मनुष्यो की रक्षा और धर्म की स्थापना करते है। भगवान के इन प्रमुख दशावतारों का भी यही उद्देश्य है।

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