धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः। तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् 

"जो धर्म का विनाश करता है, धर्म उसका का ही विनाश कर देता है, और जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म भी उसकी रक्षा करता है। इसलिए धर्म का कभी भी विनाश नहीं करना चाहिए, जिससे विनाशित हुआ धर्म भी कभी हमारा विनाश न कर सके।" 

'जो शाश्वत है, पूर्ण सत्य है जिसमे से यदि पूर्ण भी निकल जाए तो भी वह पूर्ण ही रहता है।, जो सदा से है, जो सदा रहेगा, जिसका अंत कभी नहीं होगा और जिसका आरंभ भी कभी नहीं हुआ वही सनातन है। यही सनातन सत्य ही परमेश्वर है जो साकार और निराकार दोनों ही रूपों मे विद्यमान है। हम अपनी भावना के आधार पर उसकी कल्पना करते है वही आरम्भं का भी आरम्भिक बीज है 

सृष्टि के आरंभ मे ही उस परमेश्वर ने सब मनुष्यों के कल्याण के लिए, ज्ञान के रूप मे वेदों का प्रकाश दिया, उसी ने ये मानव तन और ये संपूर्ण सृष्टि रच कर दी, हम यूं ही ना भटक जाये, इसलिए वेदों के ज्ञान द्वारा हमे निर्देशित किया। उसने मानव को कर्म करने की सवतंत्रता दी है वो मानव के किसी भी कर्म मे हस्तक्षेप नहीं करता, इसीलिए मानव अपने कर्मो के लिए पूर्ण उत्तरदायी होता है 

मानव को कौन सा कर्म करना चाहिये और कौन सा नहीं, नेत्रों से क्या देखना चाहिये और क्या नहीं, कानों से क्या सुनना चाहिये और क्या नहीं इन्ही सभी प्रश्नों का उत्तर वेद है। इसलिए महऋषि दयानन्द का यह कथन वेदों की और लौटो प्रासंगिक ही है, क्योकि वेद ही हमारी सनातन संस्कृति का आधार है 

।।ॐ।।असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योर्तिगमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।।

'हे ईश्वर मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो।'

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।


।।ॐ।। पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।  

'सत्य दो धातुओं से मिलकर बना होता है 'सत्' और 'तत्'। सत का अर्थ 'यह' और तत का अर्थ 'वह' होता है। दोनों ही सत्य है। अहं ब्रह्मास्मी और तत्वमसि। अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ और तुम भी ब्रह्म हो। यह संपूर्ण जगत ब्रह्ममय है। ब्रह्म पूर्ण है। यह जगत् भी पूर्ण है। 

पूर्ण जगत् की उत्पत्ति पूर्ण ब्रह्म से ही हुई है। पूर्ण ब्रह्म से पूर्ण जगत् की उत्पत्ति होने पर भी ब्रह्म की पूर्णता में कोई न्यूनता नहीं आती। वह शेष रूप में भी पूर्ण ही रहता है। यही एक मात्र सनातन सत्य है।'

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