हिंदू धर्म के अनुसार श्रावण मास बहुत ही शुभ माना जाता है, यह महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। इसलिए शिवभक्तों को इस महीने का बेसब्री से इंतजार करते है। इस पूरे महीने भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष रूप से पुरे विधि और विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है। इस वर्ष श्रावण का महीना 25 जुलाई से आरम्भ हो रहा है।

 

श्रावण में कावड़ यात्रा क्यों मनाई जाती है, यह कब शुरू हुई थी।

श्रावण में कावड़ यात्रा क्यों मनाई जाती है, यह कब शुरू हुई थी।

श्रावण के महीने में सभी शिव भक्त कावड़ लेकर जाते हैं, सभी कावड़ियों इस यात्रा लेकर बहुत उत्सुक होते है। इस महीने में कांवड़ियां गंगाजल को भरकर अपने कांधे पर लेकर आते हैं और प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग या अपने गांव या शहर के शिव मंदिरो में चढ़ाते हैं। अधिकतर श्रद्धालु कांवड़ीये गौमुख, इलाहबाद, हरिद्वार और गंगोत्री जैसे तीर्थस्थलों से गंगाजल को पैदल ही भरकर लाते हैं और शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।


कावड़ यात्रा से सम्बंधित पौराणिक कथा

कांवड़ यात्रा को लेकर एक पौराणिक कथा है। क्योकि सावन के महीने मे ही देवताओं और असुरों द्वारा समुंद्र मंथन किया गया था। जब मंथन से कालकूट विष निकला तो एक मात्र शिव ही थे, जिन्होने उसे ग्रहण कर अपने कंठ मे धारण कर नीलकंठ कहलाये। यही से ही सावन मे चलने वाली कावड़ यात्रा का प्रारम्भ हुआ।

 

कालकूट विष को धारण करके शिव उसकी ज्वाला को शांत करने के लिये ऋषिकेश मे तपस्या करने लगे तब सर्वप्रथम परशुराम जी ने गंगा से जल ले जाकर भगवान शिव को समर्पित किया तभी से ही कावड़ यात्रा अपने अस्तित्व मे आई और गंगा जल ले जाकर शिव को अर्पित किया जाने लगा।


तभी से श्रावण के महीने में कांवड़ यात्रा पर जाने की परंपरा शुरू हो गई और यूपी, उत्तराखंड समेत सभी राज्यों से सभी शिव भक्त हर साल श्रावण के महीने में कांवड़ यात्रा पर जाने लगे निकालते हैं।


कावड़ यात्रा कितनी प्रकार की होती है।

भगवान परशुराम के द्वारा शुरू की गई कांवड़ यात्रा को शुरू में पैदल ही निकाला जाता था, लेकिन अब अपनी सहूलियत और समय के अनुसार इस यात्रा को निकला जाता है। कांवड़ यात्रा फिलहाल तीन प्रकार से निकाली जाती है।

  • 1. खड़ी कांवड़ यात्रा 

इस कांवड़ यात्रा में भक्त कंधे पर कांवड़ लेकर पैदल यात्रा करते हुए गंगाजल लेने जाते हैं। यह यात्रा सबसे कठिन मानी जाती है, क्योंकि इसके नियमो का पालन करना काफी कठिन होता हैं। इस कांवड़ यात्रा के दौरान कावड़ को जमीन पर रखा नहीं जाता है और न ही उसे कहीं पर टांगा जाता है। भोजन करते समय या फिर विश्राम करते समय कावड़ को किसी स्टैंड में रखा जाता है या फिर उसे किसी दूसरे कांवड़िए को पकड़ा दिया जाता है।

  • 2. झांकी वाली कांवड़ यात्रा

आजकल कावड़िए झांकी वाली कांवड़ यात्रा भी निकालने लगे हैं। इस यात्रा में कांवड़िए भगवान शिव की सुन्दर-सुन्दर झांकीया लगाकर चलते हैं। जैसे किसी ट्रक, जीप या खुली गाड़़ी में भगवान शिव की प्रतिमा को रखकर तथा शिव भजन को बजाते हुऐ कांवड़ लेकर जाते हैं। इस दौरान सभी शिव भक्त भगवान शिव का श्रंगार करते हैं और उनके भजनो पर नाचते हुए कांवड़ यात्रा को निकालते हैं।

  • 3. डाक कांवड़ यात्रा 

डाक कांवड़ यात्रा भी देखने में झांकी वाली कांवड़ जैसी ही होती है। इसमें भी किसी गाड़ी पर भगवान शिव की प्रतिमा को सजाया जाता है और सभी शिव भक्त भोलेनाथ के भजनों पर झूमते हुए यात्रा निकालते हैं। लेकिन जब उनकी यात्रा की दुरी मंदिर से 36 घंटे या 24 घंटे की ही रह जाती है, तो उसमे शामिल कांवड़िए कांवड़ के जल को लेकर बारी-बारी से दौड़ते हैं। इस यात्रा से पहले सभी कांवड़िए संकल्प करते हैं।

कांवड़ यात्रा के नियम

  • 1. कांवड़ यात्रा के नियम काफी कठोर होते हैं जो भी कावड़िया इन नियमों का पालन नहीं करता, उसकी यात्रा अधूरी मानी जाती है। इस यात्रा में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

  • 2. कांवड़ यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार की नशीली वस्तु का सेवन करना वर्जित माना जाता है। इसके अतिरिक्त इस यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार का मांसहारी भोजन करना भी पूर्ण वर्जित होता है।

  • 3. कांवड़ यात्रा के दौरान पवित्र कांवड को जमीन पर नहीं रखा जाता है, अगर किसी कारणवश आपको कही पर रुकना पड़ता हैं तो कावड़ को आप किसी स्टैंड, पेड़ के ऊंचे स्थल या फिर किसी दूसरे कावड़िए को दे सकते हैं। अगर अपने कांवड़ को कही पर नीचे रखा तो आपको दोबारा गंगाजल भरकर अपनी यात्रा को शुरू करना पड़ता है।

  • 4. वैसे तो कांवड़ यात्रा के दौरान केवल पैदल चलने का विधान है। लेकिन अगर आपने कोई मन्नत मांगी है या कोई मन्नत पूरी हुई है तो फिर उसी हिसाब से अपनी यात्रा करें।

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