ईश्वर को निराकार और साकार ब्रह्म का स्वरूप भी माना जाता हैं, लेकिन कोई भी उनके निराकार ब्रह्म रूप को देख नहीं सकता, इसीलिए मंदिरों में ईश्वर के साकार ब्रह्म रूप को उनके विग्रह के रूप में स्थापित किया जाता हैं। सनातन धर्म के अनुसार प्रत्येक मंदिर में स्थापित भगवानों की मूर्तियां पूर्ण आकार की होती हैं, कभी भी भगवान की अधूरी मूर्ति को स्थापित नहीं किया जाता है।

 

पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी ही क्यों स्थापित है?

लेकिन भारत में एक प्रसिद्ध मंदिर ऐसा भी हैं जहां पर सदियों से स्थापित भगवान की प्रतिमा अधूरी हैं, जिसके प्रति लोगो में अटूट श्रद्धा हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी श्रद्धा भाव से इन अधूरी मूर्तियों के दर्शन करता है उस वयक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। यह मंदिर उड़ीसा राज्य के पूरी में स्थित है।


पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी ही क्यों स्थापित है?


उड़ीसा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर भारत के साथ पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। श्री जगन्नाथ मंदिर श्री कृष्ण के भक्तों के लिए आस्था का केंद्र होने के साथ साथ वास्तुकला का भी एक बेजोड़ नमुना है। जगन्नाथ मंदिर अपने अंदर कई रहस्यों को संजोय है, जिनका खुलासा आज भी वैज्ञानिको के लिए एक चुनौती बना हुआ है।


जगन्नाथ मंदिर में विराजमान भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह को नील माधव के रूप में पूजा जाता है। भगवान की यह प्रतिमा अपने आपमें अनुपम और अद्भुत है। इस मंदिर के बारे में यह मान्यता है की यहाँ भगवान सशरीर रूप में मौजूद हैं इसीलिए उनकी सेवा भी उसी तरह से की जाती है। यहाँ स्थापित भगवान भी एक साधारण मनुष्य की तरह बीमार पड़ते हैं और फिर उनका उपचार किया जाता है। प्रत्येक 12 वर्ष में इन मूर्तियों को बदल दिया जाता है। भगवान की इन मूर्तियो के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं।


भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी क्यों है इसकी पौराणिक कथा 


जगन्नाथ मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी बनी है, यह प्रतिमा अधूरी ही क्यों स्थापित है, शायद बहुत कम लोग ही इस बारे में जानते होंगे। आज इस लेख के द्वारा भगवान जगन्नाथ की मूर्ति क्यों अधूरी है इस रहस्य को जानने का प्रयास करेंगे।


इस संबंध में एक जन कथा प्रचलित है कि एक समय भगवान श्रीकृष्‍ण अचानक नींद में राधे-राधे पुकारने लगे। यह देखकर भगवान की सभी पत्नियां चौंक गई, कि श्री कृष्ण अभी तक राधा को नहीं भले हैं। इसलिए सभी ने मिलकर माता रोहिणी को इस संबंध में बताया और उनसे राधा और श्री कृष्ण की रासलीला की कथा को सुनाने का आग्रह किया।


माता रोहिणी ने उनकी बात मानकर सुभद्रा को द्वार पर पहरे करने के लिए बैठा दिया तो ताकि जब वो कथा सुना रही हो उस समय कोई कक्ष में भीतर प्रवेश न करे, चाहे वो बलराम या कृष्‍ण ही क्यों न हो। सुभद्रा द्वार पर पहरा देने लगी और भीतर माता रोहिणी श्रीकृष्ण की पत्नियों को राधा की कथा सुनाने लगी।


सुभद्रा भी द्वार पर खड़ी होकर यह कथा सुनने लगी। उसी समय बलराम और श्रीकृष्‍ण भी वहा पहुंच गए। सुभद्रा को इसका भान ही नहीं हुआ और वे तीनों भाव विह्वल होकर कथा को सुनने लगे। तीनों कथा सुनने में मग्न होकर ऐसी अवस्था में बैठ गए की पूरे ध्यान से देखने पर भी उनके हाथ-पैर भी नहीं दिखाई दे रहे थे। उसी समय वहां अचानक देवऋषि नारद आ गए। तीनों को जब चेतना आयी तो वहा उन्होंने नारद जी को देखा। 


तब नारद जी ने भगवान कृष्ण से प्रार्थना की कि हे प्रभु आज मेने आप तीनों के जिस मूर्तिस्थ रूप के किए हैं, वह सभी सामान्य जनों के दर्शन हेतु भी इस पृथ्वी पर सदैव सुशोभित रहे। इस पर भगवान ने तथास्तु कह दिया। कहते हैं उसी समय से भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा जी तीनो उसी मूर्तिस्थ स्वरूप में ही जगन्नाथपुरी में विराजमान है। कहते है सर्व प्रथम इन मूर्तियों को विश्वकर्मा जी ने ही बनाया था।


भगवान कृष्ण द्वारा राजा को सपने आदेश देना 


कलियुग में श्री कृष्ण ने राजा इन्द्रद्युम्न को उनके सपने में दर्शन देकर कहा कि वह पुरी में दरिया के किनारे स्थित एक पेड़ के तने से उनका विग्रह बनवाकर उसे मंदिर में स्थापित करे। भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा के अनुसार राजा ने उस पेड़ को खोजकर उसकी मूर्ति बनाने के लिए एक काबिल बढ़ई की खोज आरम्भ कर दी।



लेकिन कोई योग्य कारीगर नहीं मिला जो मूर्तियों का निर्माण कर सके। तब भगवान विश्‍वकर्मा एक बूढ़े व्यक्ति का रूप धरकर राजा के पास आये और कहा की वह नीलमाधव की मूर्ति को बना सकते हैं। लेकिन उनकी यह शर्त है कि वे 21 दिन में मूर्ति को बनाएंगे और उस दौरान उन्हें कोई नहीं देखेगा। 


राजा ने उनकी बात मानली और विश्वकर्मा ने मूर्ति को बनाना शुरू कर दिया। कुछ दिनों तक उस कक्ष से आरी, छैनी और हथौड़ी की आवाजें आती रहीं, लेकिन फिर आवाज आनी बंद हो गई। राजा इंद्रदयुम्न की रानी गुंडिचा जब दरवाजे के पास गई तो उसे अंदर से कोई आवाज नहीं सुनाई दी, जिससे वह घबरा गई। उसने सोचा की कही वह बूढ़ा बढ़ाई मर तो नहीं गया है। 


रानी ने इसकी सुचना तुरंत राजा को दी, की अंदर से कोई भी आवाज नहीं सुनाई दे रही है। तब राजा ने सोचा कही वाकई में कारीगर के साथ कोई अनहोनी ना हो गई इसलिए सभी शर्तों और चेतावनियों को दरकिनार करते हुए राजा ने कमरे का दरवाजा खोलने का आदेश दे दिया।


राजा द्वारा अधूरी मूर्तियों को स्थापित करना 


जब राजा के आदेश पर उस कमरे को खोला गया तो वह विश्वकर्मा रूपी बूढ़ा कारीगर वहां से तुरंत गायब हो गया और वह जो 3 मूर्तियां बना रहा था वह अधूरी रह गयी। उन मूर्तियों में से भगवान नीलमाधव और उनके भाई के हाथ छोटे-छोटे थे, लेकिन उनकी टांगें नहीं बनी थी, जबकि सुभद्रा के हाथ और पांव दोनों ही नहीं बने थे। तब भगवान ने राजा को सपने में आदेश देकर इन तीनो अधूरी मूर्तियों को मंदिर में ऐसे ही प्रतिष्ठित करने को कहाँ। तभी से लेकर आज तक ये तीनों मूर्तियां इसी अधूरे रूप में विराजमान हैं।

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