श्री अर्गला स्त्रोत्र 


माँ जगदम्बे अपने भक्तो के सारे मनोरथ को पूर्ण करने वाली है, माँ को प्रसन्न करना बड़ा ही सरल है। अर्गला स्त्रोत्र माँ दुर्गा का ऋषि मार्कंड़य द्वारा रचित एक अनुपम स्त्रोत्र है जिसका श्रद्धा से पाठ करने पर आप अपनी सभी कामनाओं की पूर्ति कर सकते है। ऐसा कई भक्तो के अनुभव में आया है। 

 

अर्गला स्त्रोत्र का पाठ हिंदी अर्थ के साथ

अर्गला स्तोत्र का पाठ दुर्गा कवच के बाद और कीलक स्तोत्र के पहले करना चाहिए। यह मार्कंड़य पुराण में देवी माहात्म्य के अंतर्गत आने वाला स्तोत्र है, जो अत्यंत शुभकारक और लाभप्रद है। इस स्तोत्र का पाठ नवरात्री के अलावा देवी पूजन या सप्तशती पाठ के साथ भी किया जाता है।


अर्गला स्त्रोत्र पाठ के लाभ 


मनुष्य जिस भी कर्म की कामना करता है, वह सभी कार्य केवल अर्गल स्तोत्र के पाठ से ही पूर्ण हो जाते हैं। इस पाठ को करने से ही सभी कार्यों में विजय प्राप्त होती है। परिवार में सुख और शांति बनी रहती है, आकस्मिक धन लाभ की प्राप्ति होती है। बुरे ग्रहो विशेषकर राहु के प्रकोप से छुटकारा मिलता है। देवी कवच ​​के माध्यम से पहले चारों ओर सुरक्षा का एक चक्र बनाया जाता है और फिर उसके बाद विजयश्री की कामना के लिए अर्गला स्त्रोत्र के माध्यम से देवी भगवती से प्रार्थना की जाती है। अर्गला स्तोत्र अचूक है। यह रूप, महिमा, सफलता देने वाला है। नवरात्रि में इसे पढ़ने का एक विशेष विधान और महत्व है।


अर्गला स्तोत्र हिंदी अर्थ के साथ 


।। अथार्गलास्तोत्रम् ।।


विनियोग- ॐ अस्य श्री अर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुर्ऋषिः अनुष्टुप छन्दः श्रीमहालक्ष्मीर्देवता श्रीजगदम्बाप्रीतये सप्तशती पाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।


ॐ नमश्चण्डिकायै


हिंदी अर्थ:- ॐ चंडिका देवी को नमस्कार है। 


[ मार्कण्डेय उवाच ]

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।1।।


[मार्कण्डेय जी कहते हैं]


हिंदी अर्थ:-  जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा - इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो।।1।।


जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।

जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तुते।।2।।

 

हिंदी अर्थ:- देवि चामुण्डे! तुम्हारी जय हो। सम्पूर्ण प्राणियों की पीड़ा हरने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। सब में व्याप्त रहने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। कालरात्रि! तुम्हें नमस्कार हो।।2।।


मधुकैटभविद्राविविधातृ वरदे नमः।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।3।।


हिंदी अर्थ:- मधु और कैटभ को मारने वाली तथा ब्रह्माजी को वरदान देने वाली देवि! तुम्हे नमस्कार है। तुम मुझे रूप (आत्मस्वरूप का ज्ञान) दो, जय (मोह पर विजय) दो, यश (मोह-विजय और ज्ञान-प्राप्तिरूप यश) दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।3।।


महिषासुरनिर्णाशि भक्तनाम सुखदे नमः।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।4।।


हिंदी अर्थ:- महिषासुर का नाश करने वाली तथा भक्तों को सुख देने वाली देवि! तुम्हें नमस्कार है। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।4।।


रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनी। 

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।5।।


हिंदी अर्थ:- रक्तबीज का वध और चण्ड-मुण्ड का विनाश करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।5।।


शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनी।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।6।। 


हिंदी अर्थ:- शुम्भ और निशुम्भ तथा धूम्रलोचन का मर्दन करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।6।।


वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनी।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।7।।


हिंदी अर्थ:- सबके द्वारा वन्दित युगल चरणों वाली तथा सम्पूर्ण सौभग्य प्रदान करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।7।।


अचिन्त्यरूपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।8।।


हिंदी अर्थ:- देवि! तुम्हारे रूप और चरित्र अचिन्त्य हैं। तुम समस्त शत्रुओं का नाश करने वाली हो। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।8।।


नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।9।।


हिंदी अर्थ:- पापों को दूर करने वाली चण्डिके! जो भक्तिपूर्वक तुम्हारे चरणों में सर्वदा (हमेशा) मस्तक झुकाते हैं, उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।9।।


स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वाम चण्डिके व्याधिनाशिनि।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।10।।


हिंदी अर्थ:- रोगों का नाश करने वाली चण्डिके! जो भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते हैं, उन्हें तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।10।।


चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।11।।


हिंदी अर्थ:- चण्डिके! इस संसार में जो भक्तिपूर्वक तुम्हारी पूजा करते हैं उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।11।।


देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।12।।


हिंदी अर्थ:- मुझे सौभाग्य और आरोग्य (स्वास्थ्य) दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।12।।


विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।13।।


हिंदी अर्थ:- जो मुहसे द्वेष करते हों, उनका नाश और मेरे बल की वृद्धि करो। रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।13।।


विधेहि देवि कल्याणम् विधेहि परमां श्रियम।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।14।।


हिंदी अर्थ:- देवि! मेरा कल्याण करो। मुझे उत्तम संपत्ति प्रदान करो। रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।14।।


सुरसुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेम्बिके।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।15।।


हिंदी अर्थ:- अम्बिके! देवता और असुर दोनों ही अपने माथे के मुकुट की मणियों को तुम्हारे चरणों पर घिसते हैं तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।15।।


विद्यावन्तं यशवंतं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।16।।


हिंदी अर्थ:- तुम अपने भक्तजन को विद्वान, यशस्वी, और लक्ष्मीवान बनाओ तथा रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।16।।


प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।17।।


हिंदी अर्थ:- प्रचंड दैत्यों के दर्प का दलन करने वाली चण्डिके! मुझ शरणागत को रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।17।।


चतुर्भुजे चतुर्वक्त्र संस्तुते परमेश्वरि।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।18।।


हिंदी अर्थ:- चतुर्भुज ब्रह्मा जी के द्वारा प्रशंसित चार भुजाधारिणी परमेश्वरि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।18।।


कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वत भक्त्या सदाम्बिके।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।19।।


हिंदी अर्थ:- देवि अम्बिके! भगवान् विष्णु नित्य-निरंतर भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते रहते हैं। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।19।।


हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।20।।


हिंदी अर्थ:- हिमालय-कन्या पार्वती के पति महादेवजी के द्वारा होने वाली परमेश्वरि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।20।।


इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।21।।


हिंदी अर्थ:- शचीपति इंद्र के द्वारा सद्भाव से पूजित होने वाल परमेश्वरि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।21।।


देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।22।।


हिंदी अर्थ:- प्रचंड भुजदण्डों वाले दैत्यों का घमंड चूर करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।22।।


देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदये अम्बिके।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।23।।


हिंदी अर्थ:- देवि! अम्बिके तुम अपने भक्तजनों को सदा असीम आनंद प्रदान करती हो। मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।।23।।


पत्नीं मनोरमां देहिमनोवृत्तानुसारिणीम्।

तारिणीं दुर्ग संसारसागरस्य कुलोद्भवाम्।।24।।


हिंदी अर्थ:- मन की इच्छा के अनुसार चलने वाली मनोहर पत्नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसार से तारने वाली तथा उत्तम कुल में जन्मी हो।।24।।


इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।

स तु सप्तशती संख्या वरमाप्नोति सम्पदाम्। ॐ।।25।।


हिंदी अर्थ:- जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करके सप्तशती रूपी महास्तोत्र का पाठ करता है, वह सप्तशती की जप-संख्या से मिलने वाले श्रेष्ठ फल को प्राप्त होता है। साथ ही वह प्रचुर संपत्ति भी प्राप्त कर लेता है।।25।।


।। इति देव्या अर्गला स्तोत्रं सम्पर्णम ।।



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