शिव जी की आरती
भगवान शङ्कर समस्त संसार के अधिपति है, उनका एक नाम पशुपति भी अर्थात इस संसार में जितने भी जीव (पशु), जिसमे प्राण है चाहे वो मनुष्य हो या जानवर सबके एकमात्र अधिपति भगवान शङ्कर है। यह समस्त श्रष्टि शिव से ही प्रारम्भ होती है और अंत में उन्ही में विलीन हो जाती है। भगवान शङ्कर सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता है, जो मात्र एक लोटा जल और बेलपत्र अर्पित करने मात्र से भक्त की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण कर देते है। शिव से बड़ा दानी इस श्रष्टि कोई दूसरा नहीं है। इन्ही भगवान शिव जी की आरती को जो श्रद्धा भाव से गाता है उसके सभी मनोरत शिव पूर्ण करते है।
शिव जी की आरती हिंदी में
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥
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