वेदसार शिवस्तव भगवान शिव के त्रिमूर्ति रूप की व्याख्या है जिसे आदिगुरू श्री शंकराचार्य ने यह शिवस्तव वेद में वर्णित महेश्वर शिव की महिमा के अनुसार रचा था। यह वेदसार शिवस्तव शिव के तीनों रूपों की महिमा को प्रस्तुत करता है। महेश्वर आदि शिव ही इस ब्रह्माण्ड के रचयिता, पालनकर्ता एव विलयकर्ता है। वेदसार शिवस्तव शिव के इसी विश्वरूप का वर्णन करता है इसलिए यह अनुपम स्तुति संकलन करने योग्य है।
आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा रचित वेदसार शिवस्तव हिंदी अर्थ के साथ
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं, गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं, महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम्॥१॥
हिंदी अर्थ: जो सम्पूर्ण प्राणियों के रक्षक हैं, पाप का ध्वंस करनेवाले हैं, परमेश्वर हैं, गजराज का चर्मपहने हुए हैं तथा श्रेष्ठ हैं और जिनके जटाजूट में श्रीगंगा जी खेल रहीं हैं उन एकमात्र कामारि श्रीमहादेवजी का मैं स्मरण करता हूँ॥१॥
महेशं सुरेशं सुरारार्तिनाशं, विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं, सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्॥२॥
हिंदी अर्थ: चन्द्र, सूर्य और अग्नि तीनों जिनके नेत्र हैं उन विरूपनयन महेश्वर, देवेश्वर, देव-दुःखदलन, विभुं, विश्वनाथ, विभूति-भूषण, नित्यानन्द स्वरूप, पञ्चमुख भग्वानश्रीमहादेवजी की मैं स्तुति करता हूँ॥२॥
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं, गवेन्द्राधिरूढं गणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं, भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्॥३॥
हिंदी अर्थ: जो कैलाशनाथ हैं, गणनाथ हैं, नीलकण्ठ है॔, बैलपर चढे़ हुऐ हैं, अगणित रूपवाले हैं, संसार के आदिकारण हैं, प्रकाशस्वरूप हैं, शरीर पे भस्म लगाये हुऐ है और श्रीपार्वती जी जिनकी अर्धांगिनि हैं, उन पञ्चमुख महादेवजी को मैं भजता हूँ॥३॥
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले, महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप, प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप॥४॥
हिंदी अर्थ: हे पार्वतीवल्लभ महादेव! हे चन्द्रशेखर! हे त्रिशूलिन! हे जटाजूटधारिन! हे विश्वरूप! एकमात्र आप ही जगत में व्यापक हैं। पूर्णरूप प्रभो! प्रसन्न होइये, प्रसन्न होइये॥४॥
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं, निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं, तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्॥५॥
हिंदी अर्थ: जो परमात्मा हैं, एक हैं, जगत के आदिकारण हैं, इच्छारहित हैं, निराकार हैं और प्रणवद्वारा जानने योग्य हैं तथा जिनसे सम्पूर्ण विश्व की उत्पत्ति और पालन होता है और फिर जिनमें उसका लय हो जाता है उन प्रभु को मैं भजता हूँ॥५॥
न भूमिर्न चापो न वह्निर्न वायु र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न ग्रीष्मो न शीतं न देशो न वेषो, न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे॥६॥
हिंदी अर्थ: जो न पृथ्वी हैं, न जल हैं, न अग्नि हैं, न वायु हैं और न आकाश हैं, न तन्द्रा हैं, न निद्रा हैं, न ग्रीष्म हैं और न शीत हैं, तथा जिनका न कोई देश है, न वेष है उन मूर्तिहीन त्रिमूर्ति की मैं स्तुति करता हूँ॥६॥
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां, शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तमः पारमाद्यन्तहीनं, प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम्॥७॥
हिंदी अर्थ: जो अजन्मा हैं, नित्य हैं, कारण के भी कारण हैं, कल्याणस्वरूप हैं, एक हैं, प्रकाशकों के भी प्रकाशक हैं, अवस्थात्रयसे विलक्षण हैं, अज्ञान से परे हैं, अनादि और अनन्त हैं उन परम-पावन अद्वैत-स्वरूप को मैं प्रणाम करता हूँ॥७॥
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते, नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य, नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य॥८॥
हिंदी अर्थ: हे विश्वमूर्ते! हे विभो! आपको नमस्कार है, नमस्कार है, हे चिदानन्दमूर्ते! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। हे तप तथा योगसे प्राप्तव्य प्रभो! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। वेदवैद्य भगवन! आपको नमस्कार है, नमस्कार है॥८॥
प्रभो शूलपाणे विभो विश्र्वनाथ, महादेव शम्भो महेश त्रिनेत्र।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे, त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः॥९॥
हिंदी अर्थ: हे प्रभो! हे त्रिशूलपाणे! हे विभो! हे विश्वनाथ! हे महादेव! हे शम्भो! हे महेश्वर! हे त्रिनेत्र! हे पार्वतीप्राणवल्लभ! हे शान्त! हे कामारे! हे त्रिपुरारे! तुम्हारे अतिरिक्त न कोई श्रेष्ठ है, न माननीय है और न गणनीय है॥९॥
शम्भो महेश करुणामय शूलपाणे, गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक, स्त्वं हंसि पासि विदधासि महेश्र्वरोऽसि॥१०॥
हिंदी अर्थ: हे शम्भो! हे महेश्वर! करूणामय! हे त्रिशूलिन! हे गौरीपते! हे पशुपते! हे पशुबन्धमोचन! हे काशीश्वर! एक तुम्हीं करूणावश इस जगत की उत्पत्ति, पालन और संहार करते हो; प्रभो! तुम ही इसके एकमात्र स्वामी हो॥१०॥
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे, त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्र्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश, लिङ्गात्मकं हर चराचरविश्र्वरूपिन्॥११॥
हिंदी अर्थ: हे देव! हे शंकर! हे कन्दर्पदलन! हे शिव! हे विश्वनाथ! हे ईश्वर! हे हर! हे चराचरजगद्रूप प्रभो! यह लिंगस्वरूप समस्त जगत तुम्हीसे उत्पन्न होता है, तुम्हीमें स्थित रहता है और तुम्हीमें लय हो जाता है॥११॥
इति श्रीमच्छङकराचायॆ कृतो वेदसारशिवस्तवः सम्पूर्णः।
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