इंदु लगन  या  धन लग्न

भारतीय ज्योतिष एक विशाल क्षेत्र है, जिसमे असीम सम्भावनाये जुडी हुई है। इसमे मनुष्य के जीवन से सम्बंधित ऐसी समस्याओ का वर्णन जो किसी ना किसी रूप में सबको प्रभावित करती है। वस्तुतः प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन को जानने का इच्छुक होता है और उसमे भी विशेषतः उसके जीवन में कितनी धन सम्पति होगी इसे जानने के लिये अधिक उत्सुकता होती है।

 

इंदु लगन  या  धन लग्न का विश्लेषण

इंदु लगन  या  धन लग्न विशेष एक ऐसा योग है, जो किसी वयक्ति की कुंडली में उसके धन और समृद्धि के आकलन के रूप में जाना जाता है। बृहत् पाराशर होरा शशत्र में इसे मुख्यत चंद्र योग के रूप में वर्णित किया गया है। अष्टकवर्ग में इसका विशेष महत्व बताया गया है। इसका उपयोग ज्योतिष में किसी वयक्ति की वित्तीय स्थिति का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है।

 

इंदु लगन ’हमारे प्राचीन ऋषियों और विद्वानों द्वारा जीवन की विशिष्ट अवधि का पता लगाने के लिए तैयार की गई एक स्वतंत्र और पूर्ण विधि है जो कुंडली में मौजूद अन्य धन योगों की अपेक्षा किसी व्यक्ति के जीवन में उसकी धन और समृद्धि का विश्लेषण प्रदान करेगी। शास्त्रों के अनुसार इंदु का अर्थ चंद्रमा है, परन्तु इंदु लगन को चंद्र लग्न (राशी) के साथ मिलान नहीं करना चाहिए क्योकि ये दोनों अलग अलग होते है।


चंद्रमा न केवल धन का प्रमुख कारक और नियंत्रक गृह है, बल्कि चंद्रमा की मदद के बिना इसका कोई भी वयक्ति जीवन निर्वाह को सुगम नहीं बनाए रख सकता है तो अन्य चीजों को तो छोड़ ही देंना चाहिये। इसलिये इंदु लगन जीवन में शक्ति, धन, संभावना, जीविका तथा कुछ नया बनाने का चित्रण प्रस्तुत करता है। यह मूल वयक्ति के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का निर्धारित भी करता है।

 

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उत्तरा कलामृत में इंदु लगन को 'स्वयं के धन' के अंतर्गत 'आदि योग' के बाद सूचीबद्ध किया गया है। इसके बाद 'धन योग' और 'विशेष धन योग' को सूचीबद्ध किया गया है। जो यह इंगित करता है कि इंदु लगन का परिणाम कुंडली में मौजूद अन्य धन योगों से बिलकुल स्वतंत्र है। 


अर्कान्नागचटस्तनुर्जननटः खेटायनं स्युस्तनो-
श्चन्द्राद्भाग्यपयोः क्लैक्यमिनहृच्छिष्टं विद्योर्यद्गृहम्।
तद्राशौ तु विपापशोभनखगे कोटीश्वरं तन्वते,
चेत्पापे तु सहस्त्रशः खलखगे तुंगेऽपि कोटीश्वरम्।। 

इंदु लग्न की गणना का नियम 


इंदु लग्न की गणना में राहु-केतु को कोई स्थान नही दिया गया है। इसके अतिरिक्त अन्य समस्त सातों ग्रहों को लिया गया है जिन्हें कुछ अंक दिये गये हैं जिन्हें ग्रहों की किरणें या कलाओं के आधार पर निर्धारित किया गया हैं। जिसके अनुसार गणना करके इंदु लग्न को प्राप्त किया जाता है। यह कलाएं इस प्रकार हैं:-

ग्रह

कलाओं की संख्या

सूर्य 

30 

चंद्रमा 

16 

मंगल 

बुध 

बृहस्पति 

10 

शुक्र 

12 

शनि 


इन्दु लग्न की गणना करने के लिए सबसे पहले जन्म कुण्डली में चंद्रमा से नवमेश की कला और लग्न से नवमेश की कलाओं को प्राप्त करना होता है। इसके पश्चात इन दोनों का योग किया जाता है, यदि यह योग 12 से कम हो तो उस संख्या को लिख लिया जाता है, लेकिन अगर यह योग 12 से अधिक होता है, तो इसे 12 से भाग करके शेषफल को प्राप्त किया जाता है शेषफल संख्या या तो 12 बचे या 12 से कम होनी चाहिये, परंतु ध्यान रहे की यह 0 नहीं होनी चाहिए यदि यह 0 आती है तो हम उसके स्थान पर 12 को लिख लेते है

इस प्रकार से जो संख्या प्राप्त होती है उस संख्या के बराबर जन्म कुण्डली में जहां चंद्रमा स्थित होता है वहां से शुरू करके आगे के भावों को गिनने पर जो भाव आता है, वही जन्म कुण्डली का इंदु लग्न होता है।


उदाहरण कुण्डली से हम यहां आपको इन नियमों का उपयोग करके दिखाएंगे जिससे आप आसानी से कुण्डली में इन्दु लग्न का पता लगा सकेंगे:-
indu lagna dhan lagna

यहां हमने कन्या लग्न की कुण्डली ली है लग्न में कोई गृह नहीं हैं, दूसरे भाव में सूर्य और बुध, तीसरे भाव में कोई गृह नहीं, चौथे में केतु, पाँचवे भाव में कोई गृह नहीं, छठे में शनि, सप्तम में कोई गृह नहीं, अष्टम भाव में चंद्रमा, नवम में बृहस्पति, दशम में राहु, एकादश में मंगल और बारहवें भाव में शुक्र स्थित हैं 

कुण्डली में लग्न से नवें भाव में वृषभ राशि है जिसका स्वामी शुक्र है, जिसे 12 कलाएं प्राप्त हैं इसी प्रकार चंद्रमा से नवें भाव में धनु राशि है जिसका स्वामी गुरू है, जिसे 10 कलाएं प्राप्त हैं

इस प्रकार दोनों ग्रहों की कलाओं का योग शुक्र (12) + गुरू (10) = 22 बनता है, यह योग चूंकि 12 से अधिक है, इसलिए हम इसे 12 से भाग करते हैं, तो भाग करने पर शेषफल 10 प्राप्त होता है। 

अब जन्म कुण्डली में चंद्रमा जो कर्क राशि का होकर अष्टम भाव में बैठा है वहाँ से 10 भाव आगे गिनने पर मकर राशि द्वारा गृहीत 5 वां भाव आता है जो इस कुण्डली का इन्दु लग्न बनता है
indu lagna dhan lagna

अब दूसरे उदहारण से इसे पुनः समझने का प्रयत्न करते है:-

यहां हमने सिंह लग्न की कुण्डली ली है। लग्न में कोई गृह नहीं हैं, दूसरे, तीसरे व चौथे भाव में भी कोई गृह नहीं है, पाँचवे भाव में राहु, छठे भाव में मंगल और गुरु, सप्तम में कोई गृह नहीं, अष्टम भाव में बुध, नवम में शुक्र और सूर्य, दशम में शनि, एकादश में चंद्र और केतु और बारहवें भाव में कोई गृह स्थित नहीं हैं।

कुण्डली में लग्न से नवें भाव में मेष राशि है जिसका स्वामी मंगल है, जिसे 6 कलाएं प्राप्त हैं। इसी प्रकार चंद्रमा से नवें भाव में कुंभ राशि है जिसका स्वामी शनि है, जिसे 1 कला प्राप्त हैं।

इस प्रकार दोनों ग्रहों की कलाओं का योग मंगल (6) + शनि (1) = 7 बनता है, यह योग चूंकि 12 से कम है, इसलिए इसे 12 से भाग करने की कोई आवश्यकता नहीं हैं। 


अब जन्म कुण्डली में चंद्रमा जो कर्क राशि का होकर एकादश भाव में बैठा है वहाँ से 7 भाव आगे गिनने पर धनु राशि द्वारा गृहीत 5 वां भाव आता है जो इस कुण्डली का इन्दु लग्न कहलायेगा।

इन्दु लग्न से धन की स्थिति का आकलन करने के लिए कुछ विचारनीय पहलु:-
  • इन्दु लग्न में यदि एक शुभ ग्रह हो और वह पाप प्रभाव से मुक्त हो तो व्यक्ति जीवन में काफी धन कमाता है।
  • इंदु लग्न में यदि उच्च का पाप ग्रह बैठा हो तो व्यक्ति धनवान व नीच का पाप ग्रह हो तो दरिद्र होता है।
  • इन्दु  लग्न का स्वामी यदि इंदु लग्न को देख रहा हो तो व्यक्ति धनवान होता है।
  • इंदु लग्न का कुंडली के धनेश और लाभेश से किसी भी प्रकार का संबंध बने तो व्यक्ति को धनवान बनाता है।
  • जब कई ग्रह एक साथ इन्दु लग्न पर अपना प्रभाव डाल रहे हो या इन्दु लग्न से दूसरे और ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो व्यक्ति विशेष रूप से निश्चित ही धनवान बनता है।
  • यदि धन लग्न में कई नैसर्गिक शुभ ग्रह स्थित हो तो वह व्यक्ति बहुत धनी होगा।
  • यदि इंदु लगन में केवल एक ही शुभ ग्रह स्थित हो परंतु वह किसी शुभ अथवा अशुभ ग्रह से भी दृष्ट हो तो वह व्यक्ति धनवान तो होगा परंतु पहले की स्थिति की तुलना में कम होगा
  • यदि इंदु लगन या धन लग्न में सिर्फ पाप ग्रह जैसे सूर्य शनि या मंगल स्थित हो तो व्यक्ति के पर्याप्त रूप से धनी होता है।
  • यदि इंदु लगन या धन लग्न में कोई अशुभ ग्रह अपनी उच्च राशि में स्थित हो तो वह वयक्ति जीवन के प्रथम भाग में सामान्य रूप से धनी होगा परंतु जीवन के दूसरे भाग में उसका धन बढ़ेगा।
  • धन लग्न से केंद्र त्रिकोण में स्थित शुभ ग्रह की दशा में व्यक्ति धन कमाएगा परन्तु इसके विपरीत लग्न से 3,6,8,12 भाव की स्थिति ग्रह राशि स्वामी की दशा में धन का नाश होता है।

यदि इंदु लगन कुंडली के तीसरे, छठे, आठवे, और बाहरवें भाव में आता है तो ये भाव इंदु लगन के लिये ख़राब माने जाते है। तीसरे भाव के इंदु लगन वाले को धन पाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है, छठवें भाव के साथ यह दुश्मनी का व्यव्हार दिखाएगा, आठवें भाव का इंदु लगन धन की सम्भावनाओ को मार देता है, और बाहरवें भाव का इंदु लगन धन की संभावनाओं को नज़रअंदाज़ करेगा।

1 टिप्पणियाँ

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  1. Apne is post me aapne bahut hi achchi jankari bataya hai...

    Mera bhi ek blog www.finoin.com hai jisme share market and mutual funds ke bare me jankari diya jata hai...

    Aap ek backlink degen...
    Thanks...

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