आपने अक्सर शिव मंदिर में यह देखा होगा कि शिवलिंग के पास ही नंदी विराजमान होते है, और भगवान शिव के साथ सभी लोग नंदीश्वर की भी पूजा करते हैं और उनके कानो में अपनी इच्छा को कहते हैं। आज हम इस लेख के द्वारा जानेगे की नंदी कैसे बने भगवान शिव के वाहन? 


नंदी कैसे बने शिव के वाहन


नंदीश्वर भगवान शिव के प्रमुख गणों भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय में से एक प्रमुख गण हैं। ऐसी मान्यता है, हमारे प्राचीन साहित्य जैसे - कामशास्त्र, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र और मोक्षशास्त्र में से कामशास्त्र के रचनाकार भगवान नंदी ही थे।
 

नंदी कैसे बने भगवान शिव के वाहन?


क्या आपने कभी यह सोचा है, कि नंदी कैसे बने भगवान शिव के वाहन और नंदी के बिना शिवलिंग की पूजा को अधूरा क्यों माना जाता है? आखिर इसके पीछे की कहानी क्या है? नंदी भगवान महादेव शिव के वाहन और सबसे प्रिय गण है, पुराणों में नंदी महाराज से सम्बन्धित एक कथा मिलती है, शिलाद मुनि जो परम तपस्वी थे उनका ब्रह्मचार्य व्रत का पालन करने के कारण उनका वंश समाप्त होता देख उनके पूर्वज चिंतित रहने लगे और उन्होंने अपनी चिंता शिलाद मुनि से व्यक्त की। 


शिलाद ऋषि निरंतर योग और तपस्या आदि में ही व्यस्त रहते थे इस कारण से वह गृहस्थाश्रम को नहीं अपनाना चाहते थे अतः उन्होंने संतान प्राप्ति की कामना से उन्होंने इंद्र देव को प्रसन्न करके उनसे जन्म और मृत्यु से मुक्त पुत्र का वरदान माँगा। परन्तु इंद्र इस वरदान को देने में असर्मथ थे इसलिये उन्होंने इसके लिये भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा। तब इंद्र की आज्ञा से शिलाद ऋषि ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया और उनसे उनके ही समान जन्म और मृत्यु से मुक्त एक दिव्य पुत्र की कामना की।

 

भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर स्वयं को ही शिलाद के पुत्र रूप में प्रकट होने का वरदान दिया। कुछ समय बाद एक दिन जब शिलाद ऋषि भूमि को जोत रहे थे तब उन्हें एक बालक मिला। शिलाद मुनि ने उस बालक का नाम नंदी रखा। उसको बड़ा होते देखकर एक दिन भगवान शंकर ने वरुण और मित्र नामक दो मुनियो को शिलाद ऋषि के आश्रम में भेजा, वहां उन दोनों मुनियो ने नंदी को देखकर उसके अल्पायु होने की भविष्यवाणी की।


जब नंदी को इस बात का ज्ञान हुआ तो वह महादेव शिव की आराधना करने के लिये वन में तपस्या करने चले गये। तब भगवान शिव ने उनकी कठोर साधना से प्रसन्न होकर उन्हें यह वरदान दिया- हे वत्स नंदी! अब से तुम सम्पूर्ण रूप से मृत्यु के भय से मुक्त हो गये अब से तुम अजर और अमर हो। अब मेरे अनुग्रह से तुम्हे जरा, जन्म और मृत्यु किसी से भी कोई भय नहीं होगा।"


तब भगवान शंकर ने माता शक्ति की सहमति और वेदो की अनुपस्थिति में नंदी को संपूर्ण गणों और गणेशों का अधिपति नियुक्त किया। इस तरह से नंदी अब नंदीश्वर बन गए और भगवान शिव ने नंदी को अपने वाहन के रूप में नियुक्त किया। नंदी का विवाह मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ संपन्न हुआ। भगवान शंकर ने नंदी को यह वरदान भी दिया कि अब से जहाँ पर भी मेरा निवास स्थान होगा वहाँ पर तुम्हारा भी निवास होगा। तभी से हर शिव मंदिर में शिव के सामने नन्दीश्वर की स्थापना की जाने लगी।

 

शिव जी का वाहन नंदी पुरुषार्थ और परिश्रम का प्रतीक।


भगवान शिव जी का वाहन नंदी पुरुषार्थ और परिश्रम का प्रतीक माना जाता है। नंदी एक संदेश यह भी देते है कि जिस तरह वह भगवान शिव के वाहन है, ठीक उसी तरह हमारा शरीर हमारी आत्मा का वाहन है। जैसे नंदी की दृष्टि हर समय शिव की ओर होती है, उसी तरह हमारी दृष्टि भी हमारी आत्मा की ओर होनी चाहिये। इसलिये हर व्यक्ति को सबसे पहले अपने दोषों को देखना चाहिए। और हमेशा दूसरों के लिए अच्छी भावना को रखना चाहिए।


नंदी यह संकेत भी देते है कि शरीर का ध्यान आत्मा की ओर होने पर ही हर व्यक्ति अपने चरित्र, आचरण और व्यवहार में पवित्रता को ला सकता है। इसे ही सामान्य भाषा में हम मन का स्वच्छ होना कह सकते हैं। इस प्रकार संतुलित शरीर और मन ही हर कार्य और लक्ष्य में सफलता के समीप ले जाते हुए मनुष्य अंत में उसे मोक्ष को प्राप्त करा देते है।


धर्म शास्त्रों में एक उल्लेख यह भी मिलता है कि जब शिव अवतार नंदी का रावण ने अपमान किया था तो नंदी ने उसके सर्वनाश की घोषणा कर दी थी। रावण संहिता के अनुसार कुबेर पर विजय प्राप्त करके जब रावण लौट रहा था तो वह थोड़ी देर के लिये कैलाश पर्वत पर रुका था। वहाँ शिव के पार्षद एवं वाहन नंदी के कुरूप स्वरूप को देखकर रावण ने उसका उपहास किया था। तब नंदी ने क्रोध में आकर रावण को यह श्राप दिया कि मेरे जिस पशु स्वरूप को देखकर तू इतना हँस रहा है। उसी पशु स्वरूप के जीव तेरे विनाश का कारण बनेंगे।


नंदी का एक रूप सबको आनंदित करने वाला है। सबको आनंद प्रदान करने के कारण ही भगवान शिव के इस अवतार का नाम नंदी पड़ा। शास्त्रों में इसका उल्लेख इस प्रकार है-


त्वायाहं नंन्दितो यस्मान्नदीनान्म सुरेश्वर। तस्मात् त्वां देवमानन्दं नमामि जगदीश्वरम।।


-शिवपुराण शतरुद्रसंहिता ६/४५


अर्थात नंदी के दिव्य स्वरूप को देख शिलाद मुनि ने कहा था तुमने प्रगट होकर मुझे आनंदित किया है। अत: मैं उस आनंदमय जगदीश्वर को प्रणाम करता हूं।

नंदी कैसे बने शिव के वाहन

ऐसा शिव मंदिर जहाँ शिव के वाहन नंदी उपस्थित नहीं है। 


नासिक शहर के प्रसिद्ध पंचवटी स्थल में गोदावरी नदी के तट के पास एक ऐसा शिवमंदिर विराजमान है जहां शिव के वाहन नंदी माहराज की उपस्थिति नहीं है। अपनी तरह का यह एक ऐसा अकेला शिवमंदिर है। पुराणों में इसका उल्लेख इसप्रकार है कि यह कपालेश्वर महादेव मंदिर नामक इस स्थल पर किसी समय भगवान शिवजी ने यहाँ निवास किया था। यहाँ पर नंदी के अभाव की कहानी भी बड़ी रोचक है।


यह उस समय की बात है, जब ब्रह्मा जी के पाँच मुख थे। चार मुख वेदोच्चारण करते थे, और पाँचवाँ मुख केवल निंदा करता था। उस निंदा से संतप्त होकर शिवजी ने भैरव रूप में उनके पांचवे मुख को काट डाला। इस घटना के कारण शिव जी को ब्रह्महत्या का पाप लग गया। उस पाप से मुक्ति पाने के लिए शिवजी ब्रह्मांड में हर जगह घूमने लगे तब सोमेश्वर नामक स्थान पर एक बछड़े ने उन्हें इस पाप से मुक्ति का उपाय बताया था। 


कथा में कहा गया है कि यह बछड़ा नंदी महाराज थे। वह शिव जी के साथ गोदावरी के रामकुंड तक गया और उसने शिव को कुंड में स्नान करने को कहा। स्नान के बाद शिव जी ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो गये। नंदी के कारण ही शिवजी को ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली थी। इसलिए उन्होंने नंदी को गुरु माना और उन्हें अपने सामने बैठने को मना किया



इसलिये इस कथा के अनुसार आज भी माना जाता है कि पुरातन काल में इस टेकरी पर शिवजी की एक पिंडी थी। अब यहाँ एक विशाल मंदिर बन चूका है। पेशवाओं के कार्यकाल में इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था। मंदिर की सीढि़याँ उतरते ही सामने गोदावरी नदी बहती हुई नजर आती है। उसी में वह प्रसिद्ध रामकुंड भी है, जहां भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था। इसके अलावा इस परिसर में और भी मंदिर है। लेकिन इस मंदिर में आज तक नंदी की स्थापना नहीं की गई। शायद भारतवर्ष में यह अकेला शिव मंदिर है जहां शिव के वहाँ नंदीश्वर नहीं है।

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