श्री राम मर्यादा पुर्षोत्तम


भगवान राम तो मर्यादापुर्षोत्तम और अनंत है ये ज्ञान की वो गङ्गा है जो निरन्तर बह रही है। ये तो वो सागर है जिसकी गहराई कोई भी नहीं नाप सकता। पिछले ब्लॉग मे श्री राम के कुछ चरित्रों का वर्णन किया था। अब एक एक करके उनकी व्याख्या करने का प्रयास कर रहा हू।  

गुरु शिष्य की मर्यादा 

भारतवर्ष मे गुरु का विशेष महत्व है। प्राचीन काल से गुरु शिष्य का ये सम्बन्ध भारतवर्ष की हर आने वाली पीढ़ी को एक नई प्रेरणा देती आ रही है। भगवान राम ने अपने जीवन काल मे कई गुरुवो का सानिध्य प्राप्त किया। 

उनका अपने हर गुरु के प्रति जो स्नेह और कर्तव्यपरायणता का जो उदाहरण प्रस्तुत किया है जो उस भाव को समझने वाले हर व्यक्ति को भावविभोर कर देता है। वैसे तो उनके जीवन का हर एक एक क्षण मानव सभय्ता के लिये एक अनमोल धरोहर है जिसे शायद ये जीवन भी कम पड़ जाये संजोने के लिये।             

महऋषि विश्वामित्र का आगमन 

महऋषि विश्वामित्र और भगवान राम का जब मिलन होता है और राम पिता की आज्ञा से विस्वामित्र की सहायता के लिये जाते है तो विश्वामित्र उन्हे उस वन से लेकर जाते है जहां तड़का राक्षसी का निवास होता है। 

राम तड़का से युद्ध अवश्य करते है परन्तु उसका वध तब तक नहीं करते जब गुरु उनहे इसकी आज्ञा नहीं देते यही राम की धैर्य की मर्यादा है की आपत्ति मे भी वो स्थिरचित्त है और गुरु की आज्ञा पर ही वो तड़का का वध करते है। ये राम का प्रथम युद्ध था जिसमे भी उन्होंने अपनी वीरता और गुरु की मर्यादा का अनुपम सयोंग प्रस्तुत किया। 

जब विश्वामित्र सीता स्वयंवर का निमंत्रण ले आते है तो राम गुरु को स्वयं को उनके पास बुलाने के लिये कहते है। उस समय विश्वामित्र का यह सम्बोधन की हे राम तुम्हारै पास आने मे कष्ट नही परम आंनद मिलता है राम की विनम्रता को देखकर विश्वामित्र कहते की राम तुम सब कुछ करते हो परन्तु कर्ता का अहंकार तुममे नहीं आता। गुरु के ये शब्द ही राम की मर्यादा को सर्वप्रथम परिभाषित करते है।

Lord rama guru aur shishya

सीता स्वंवर के समय जब राजा जनक सभी को आमंत्रित करते है शिव धनुष को भंग करने के लिये परंतु राम बिना गुरु की आज्ञा के नहीं जाते। यहाँ वो सामर्थयवान पुरुष की उस छवि को प्रस्तुत करते है जिसकी सामर्थ्यशक्ति उसकी मर्यादा के अधीन है। 

जब सभी राजा शिव धनुष को भंग करने मे असमर्थ हो जाते तब राजा जनक कुछ अपशब्द बोलते है जिन्हे लक्ष्मण सहन नही करते और राजा जनक को प्रतिउत्तर देते है। परंतु राम गुरु आज्ञा अधीन होने के कारण शान्तचित बैठे रहते है। यहाँ वो वीर पुरुष की उस धैर्य क्षमता का उदहारण प्रस्तुत करते है जो ललकारे जाने पर भी गंभीरता को नहीं त्यागता। गुरु आज्ञा मिलने पर ही वो धनुष भंग करने के लिये जाते है।                                                                       

धनुष भंग होने पर जब राजा दसरथ बारात लेकर आते है तो लक्ष्मण श्री राम से पिता के दर्शन के लिये जाने को कहते है परंतु राम उन्हे मना कर देते है और बिना गुरु की आज्ञा के वो पिता दर्शन के लिये नही जाते राम की यही मर्यादा तो उन्हे मानव मन मस्तिष्क पर इस प्रकार अंकित कर देती है की युग बदलने पर भी उसकी छवि कभी धूमिल नहीं होती। 

वनवास काल मे भी उनका हर एक गुरु के साथ मिलन मर्यादाओं की नई परिभाषाओ को गढ़ता चला जाता है। जिसमे ऋषी शरभङ्ग के साथ उनका मिलन तो मर्यादा की उच्च पराकाष्ठा को दर्शाता है। जब ऋषि शरभङ्ग अपनी सम्पूर्ण जीवन की तपस्या का फल श्री राम को देना चाहते है तो राम उन्हे यह कहकर मना कर देते है की जब कोई मनुष्य किसी साधु के पास उसकी कमाई कोई वस्तु लेने जाता है तो वो एक चोर के समान होता है जिसे अपने पुरुषार्थ पर भरोसा नहीं होता।

अंत मे निष्कर्ष 

राम के जीवन के यही वो आदर्श है जो राम को मानव आचरण की उस परम पदवी पर आसित कर देते है जहा वो साधरण मनुष्य से ईश्वरीय तत्व की और अग्रसर हो जाता है। ऊपर दिये गये Web Links मे राम के इन्ही गुणों का वर्णन किया गया है, जिस पर आप अपने विचार व्यक्त कर सकते है।  

Post a Comment

Plz do not enter any spam link in the comment box.

और नया पुराने