बजरंग बाण का पाठ भगवान हनुमान का सबसे शक्तिशाली पाठ है जो भक्तों के सारे कष्टों का अंत करने में सक्षम है। जो नित्य इसका पाठ करता है उसे सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति अवश्य होती है। हनुमान जी अपने सभी भक्तों से बहुत प्यार करते हैं और यही कारण है वो जब भी अपने किसी भी भक्त को कष्ट में देखते हैं, तो तुरंत उसकी पुकार पर चले आते है। इसलिए प्रत्येक भक्त को हनुमान जी की पूजा पुरे मन से करनी चाहिए। 


बजरंग बाण का पाठ हिंदी में


बजरंग बाण का पाठ जो कोई भी करता है वह इंसान भयमुक्त हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार यदि आप किसी असाध्य रोग से ग्रशित है और उसका निदान चाहते हैं, तो आपको बजरंग बाण का पाठ प्रतिदिन करना चाहिए। बजरंग बान का पाठ सभी नकरात्मक शक्तियों को दूर करता हैं और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है।


श्री बजरंग बाण का पाठ हिंदी में 


॥ दोहा ॥


निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करै सनमान।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करै हनुमान॥


॥ चौपाई ॥


जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु विनय हमारी॥


जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥


जैसे कूदि सिन्धु के पारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥


आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका॥


जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा॥


बाग उजारि सिन्धु महं बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा॥


अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥


लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुर पुर नभ भई॥


अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहुं उर अन्तर्यामी॥


जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होइ दु:ख करहुं निपाता॥


जय हनुमान जयति बल सागर। सुर समूह समरथ भटनागर॥


ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले। बैरिहिं मारू बज्र की कीले॥


गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो॥


ॐकार हुंकार महाप्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो॥


ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा॥


सत्य होउ हरि शपथ पायके। रामदूत धरु मारु धाय के॥


जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दु:ख पावत जन केहि अपराधा॥


पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥


वन उपवन मग गिरि गृह माहीं। तुमरे बल हम डरपत नाहीं॥


पाय परौं कर जोरि मनावों। यह अवसर अब केहि गोहरावों॥


जय अंजनि कुमार बलवन्ता। शंकर सुवन धीर हनुमन्ता॥


बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥


भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल काल मारीमर॥


इन्हें मारु तोहि शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥


जनकसुता हरि दास कहावो। ताकी शपथ विलम्ब न लावो॥


जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दु:ख नाशा॥


चरण पकड़ करि जोरि मनावों। यहि अवसर अब केहि गोहरावों॥


उठु उठु चलु तोहिं राम दुहाई। पांय परौं कर जोरि मनाई॥


ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता॥


ॐ हं हं हांक देत कपि चञ्चल। ॐ सं सं सहम पराने खल दल॥


अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आनन्द हमारो॥


तासे विनती करौं पुकारि हरहु सकल दुःख विपत्ति हमारी


ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा


हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ


हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अन्त पछतैहौ


जन की लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा


जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना


जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई


जयति जयति जै राम पियारे। जयति जयति जै सिया दुलारे


जयति जयति मुद मंगलदाता। जयति जयति त्रिभुवन विख्याता


ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा। पावत पार नहीं लवलेषा


राम रूप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना


विधि शारदा सहित दिनराती। गावत कपि के गुन बहु भाँति


तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउं विधि नाना


यह जिय जानि शरण तब आई। ताते विनय करौं चित लाई


सुनि कपि आरत वचन हमारे। मेटहु सकल दुःख भ्रम भारे


एहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन करै लहै सुख ढेरी


याके पढ़त वीर हनुमाना। धावत बाण तुल्य बलवाना


मेटत आए दुःख क्षण माहिं। दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं


पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की


डीठ, मूठ, टोनादिक नासै। परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासे


भैरवादि सुर करै मिताई। आयुस मानि करै सेवकाई


प्रण कर पाठ करें मन लाई। अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई


आवृत ग्यारह प्रतिदिन जापै। ताकी छाँह काल नहिं चापै


दै गूगुल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेषा


यह बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहौ फिर कौन उबारे


शत्रु समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर काँपै


तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपिराज सहाई॥   


॥ दोहा ॥


प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै,सदा धरै उर ध्यान।

तेहि के कारज सकल शुभ,सिद्ध करै हनुमान॥




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