अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के ठीक 4 दिन बाद आता है इस दिन महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए अहोई अष्टमी व्रत रखती हैं। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। अहोई व्रत दिवाली से ठीक एक हफ्ते पहले आता है। इस बार अहोई अष्टमी 28 अक्टूबर को मनाई जाएगी। 


अहोई अष्टमी व्रत की कथा


हिंदू धर्म में इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। महिलाएं इस दिन अहोई माता की पूजा करती हैं। साथ ही इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने का भी विधान है। कुछ महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं। यह भी माना जाता है कि यदि गर्भ में ही संतान की मृत्यु हो रही हो तो उन्हें अहोई का व्रत रखने की सलाह दी जाती है।


करवा चौथ के व्रत की तरह ही अहोई अष्टमी का व्रत भी रखा जाता है। इसमें चंद्रमा को देख कर अर्घ्य नहीं दिया जाता है, लेकिन अहोई के दिन तारों को देखकर व्रत को पूर्ण किया जाता है। तारों को देखकर उनकी पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य देने के बाद ही जल और भोजन ग्रहण किया जाता है। इस दिन संतान की लंबी उम्र की कामना करते हुए तारों की पूजा की जाती है। 

 

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व


हिंदू धर्म में अन्य व्रतों की तरह अहोई अष्टमी का व्रत भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह व्रत संतान के कल्याण के लिए रखा जाता है। कहा जाता है कि अहोई अष्टमी का व्रत बहुत कठिन होता है। सौभाग्यशाली लोगों को ही संतान का सुख मिलता है, ऐसे में माता से संतान की लंबी आयु के लिए व्रत रखा जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि अहोई अष्टमी के दिन उपवास करके अहोई माता की पूजा करने से माता पार्वती अपने पुत्रों की तरह ही आपके बच्चों की रक्षा करती हैं। साथ ही पुत्र प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का विशेष महत्व है।


अहोई अष्टमी व्रत क्या है?


अहोई अष्टमी के दिन सभी माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और उसकी उन्नति के लिये सूर्योदय से लेकर शाम तक उपवास रखती हैं। इस व्रत में शाम के वक्त आकाश में तारों को देखने के बाद ही व्रत को पूर्ण करने का विधान है। कुछ नि:संतान महिलाएं भी संतान प्राप्ति की कामना से इस अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं।


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शास्त्रों में कार्तिक मास का काफी महत्व है और इसकी महत्ता का वर्णन पद्मपुराण में भी किया गया है। पुराणों में ऐसा वर्णित है कि इस महीने में प्रत्येक दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने, गायत्री मंत्र का जप करने तथा सात्विक भोजन करने से महापाप का भी नाश हो जाता है। इसलिए इस माह में आने वाले सभी व्रतो का विशेष फल होता है और यही कारण है कि इस माह मनाये जाने वाली अहोई अष्टमी व्रत का भी काफी अधिक महत्व है। यह पर्व किसी भी तरह की अनहोनी से बचाने वाला है।


अहोई अष्‍टमी के व्रत की कथा 


प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहा करता था। उसके सात पुत्र थे। एक दिन साहूकार की पत्नी दीपावली से एक दिन पहले घर की लीपापोती करने के लिये मिट्टी लेने जंगल में चली गई और कुदाल से मिट्टी को खोदने लगी। दैवयोग से जिस जगह वह मिट्टी को खोद रही थी उस जगह एक सेह की मांद थी। मिट्टी खोदते हुऐ अचानक उस स्त्री के हाथ से कुदाल उस सेह के बच्चे को लग गई जिससे सेह का वह बच्चा तुरंत ही मर गया। अपने हाथ से हुई सेह के बच्चे की हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी बहुत दुखी हुई परन्तु अब क्या हो सकता था। जो होना था वह हो चूका था इसलिये वह शोकाकुल हो पश्चाताप करती हुई अपने घर को लौट आई।


इसके कुछ दिनों बाद उसका सबसे पहले पुत्र का निधन हो गया। फिर उसके बाद दूसरे, तीसरे और इस प्रकार एक ही वर्ष में उसके सभी पुत्र मर गए। वह महिला बहुत दुखी और व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने अपना यह दुःख अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को बताया कि उसने कभी भी जानबूझ कर कोई पाप नहीं किया है फिर भी उसे यह कष्ट भोगना पड़ रहा है। हाँ, उससे एक बार मिट्टी खोदते हुए धोखे से उसके हाथों द्वारा एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई थी शायद इसीलिये उसके सभी सातों पुत्रो की मृत्यु हो गई है।


उसकी इस बात को सुनकर उसके पड़ोस में रहने वाली वृद्ध महिला ने साहूकार की पत्नी को ढांढस देते हुए कहा कि तुम्हारे इस प्रकार पश्चाताप करने से ही तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। इसलिये तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण में जाकर उस सेह और उसके बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो और उनसे अपने कर्म के लिये क्षमा-याचना करो। इससे माता तुम पर अवश्य कृपा करेगी और तुम्हारा पाप धुल जाएगा।


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तब साहूकार की पत्नी ने उस वृद्ध महिला की बात को मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास किया और पूजा-अर्चना की। इस तरह वह हर वर्ष नियमित रूप से इसी प्रकार व्रत और पूजा करने लगी। उसके इस प्रकार व्रत और पूजन से पुनः उसे सात पुत्रो की प्राप्ती हुई। तभी से ही कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई व्रत करने की परम्परा प्रचलित हो गई।


अहोई अष्टमी व्रत 2022 शुभ मुहूर्त


कार्तिक मास कृष्ण पक्ष अष्टमी शुरू - 17 अक्टूबर 2022 सोमवार सुबह 09:29 बजे से


कार्तिक मास कृष्ण पक्ष अष्टमी समाप्त - 18 अक्टूबर 2022 मंगलवार सुबह 11:57 बजे तक


अहोई अष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त 17 अक्टूबर 2022 शाम 05:47 से शाम 07:03 तक है। कुल मिलाकर पूजा का समय 01 घंटा 16 मिनट होगा।


सितारों को देखने का संभावित समय - शाम 06.11 बजे


अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय - 11:19 पी एम



अहोई अष्टमी व्रत पूजा विधि


इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं।


पूजा के शुभ मुहूर्त में सेई और सेई के बच्चों के चित्र के साथ दीवार पर अहोई माता का चित्र भी बनाया जाता है।


इसके बाद अहोई माता की पूजा रोली, फल, फूल आदि चढ़ाकर की जाती है।


अहोई अष्टमी की कथा कलश में जल भरकर खम्भे पर रखने से सुनी जाती है।


महिलाएं अपने बच्चों को पास बैठाकर अहोई व्रत की कथा को सुनती हैं।


अहोई माता को पूरी और हलवा या कुछ मिठाई का भोग लगाया जाता है।


पूजा पूरी होने के बाद तारों को देखकर और अर्घ्य देकर व्रत तोड़ा जाता है।


अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं चांदी के मोतियों की माला भी बनाती हैं, जिसमें अहोई माता का लॉकेट पड़ा होता है।


हर साल अहोई अष्टमी को इस माला में दो और मोती मिलाए जाते हैं, इसे स्याउ कहते हैं।


अहोई अष्टमी व्रत के नियम


अहोई अष्टमी के व्रत में किसी भी प्रकार की नुकीली चीजों का इस्तेमाल करना मना होता है, जैसे व्रत रखने वाली महिलाएं चाकू से सब्जी भी नहीं काट सकती हैं।


महिलाएं अहोई अष्टमी के दिन चांदी की मोती की माला अपने गले में पहनती हैं।


इस दिन व्रत को पूर्ण करते समय किसी भी प्रकार की सफेद वस्तु जैसे चावल, दूध, दही आदि का सेवन नहीं करना चहिये।


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पूजा के बाद घर में वृद्धा को वस्त्र आदि चढ़ाकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।


अहोई अष्टमी के दिन इस बात का ध्यान रखें कि अहोई माता से पहले गणेश जी की पूजा करें।


अहोई अष्टमी का व्रत तारों को देखकर खोला जाता है। इस दिन तारों के निकल जाने के बाद उनकी पूजा की जाती है और अहोई अष्टमी का व्रत अर्घ्य देकर तोड़ा जाता है।

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